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________________ जैन आगम : एक परिचय ... 53 इसमें समाधिमरण के आलम्बनभूत चौदह द्वारों का प्रतिपादन हैं- 1. आलोचना 2. संलेखना 3. क्षमापना 4. काल 5. उत्सर्ग 6. उद्गास 7. संथारा 8. निसर्ग 9. वैराग्य 10. मोक्ष 11. ध्यान विशेष 12. लेश्या 13. सम्यक्त्व 14. पादपोपगमन। आलोचना निःशल्य होकर करनी चाहिए, यह कहते हुए आलोचना के दस दोष बताए हैं। इसमें संलेखना के द्विविध प्रकारों एवं उसकी प्रक्रिया पर भी प्रकाश डाला गया है। समाधिमरण द्वारा निर्वाण पद प्राप्त करने वाली आत्माओं के दृष्टांत भी दिए गए हैं। इसी के साथ अनित्य, अशरण आदि बारह भावनाओं पर प्रकाश डाला है। 138 कुछ ग्रन्थों में मरणसमाधि और गच्छाचार के स्थान पर चन्द्रवेध्यक और वीरस्तव को गिना है अतः इन दोनों का सामान्य वर्णन निम्न है चन्द्रवेध्यक— चन्द्रवेध का अर्थ है - राधावेध। इसमें राधावेध के दृष्टांत द्वारा साधक को अप्रमत्त रहने का उपदेश दिया गया है। जैसे - तैयार हुआ व्यक्ति अल्पमात्र भी प्रमाद कर ले तो वह राधावेध सिद्ध नहीं कर सकता, उसी प्रकार जीवन की अन्तिम वेला में किंचित मात्र भी प्रमाद करने वाला साधक सिद्धि पद का वरण नहीं कर सकता। अतः मोक्षार्थी को सदा अप्रमत्त रहना चाहिए। इसमें सामान्यतया निम्न सात विषयों पर विवेचन किया गया है - विनय, आचार्यगुण, शिष्यगुण, विनयनिग्रहगुण, ज्ञानगुण, चरणगुण एवं मरणगुण। इसमें 175 गाथाएँ हैं। वीरस्तव- इस प्रकीर्णक में भगवान महावीर की स्तुति होने से इसका नाम वीरस्तव रखा गया है। इसमें 43 गाथाएँ हैं और उनमें प्रभु महावीर के 26 नामों का अलग-अलग अन्वयार्थ दिया गया है। वे 26 नाम ये हैं- 1. अरूह 2. अरिहंत 3. अरहंत 4. देव 5. जिन 6. वीर 7. परम कारूणिक 8. सर्वज्ञ 9. सर्वदर्शी 10. पारंग 11. त्रिकालविद् 12. नाथ 13. वीतराग 14. केवली 15. त्रिभुवनगुरु 16. सर्व 17. त्रिभुवनवरिष्ट 18. भगवन् 19. तीर्थंकर 20. शक्रनमस्कृत 21. जिनेन्द्र 22. वर्धमान 23. हरि 24. हर 25. कमलासन और 26. बुद्ध । इसमें अरिहंत के तीन, अरहंत के चार और भगवान के दो अन्वयार्थ किए गए हैं। शेष नामों के एक-एक अन्वयार्थ किए गए हैं। 139
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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