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________________ 52... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण है। इसीलिए मुनि को बाला, वृद्धा, दोहित्री और भगिनी के स्पर्श का भी निषेध किया गया है। इसमें ‘सुगच्छ’ की परिभाषा बताते हुए कहा है कि जिस गच्छ में दान, शील, तप और भावना इन चार प्रकार के धर्मों का आचरण करने वाले गीतार्थ मुनि अधिक मात्रा में हों वह सुगच्छ है। इसमें आचार्य को संघ का पिता कहते हुए गुरु और शिष्य दोनों एक दूसरे के आत्महितैषी बने इसकी प्रेरणा भी दी गई है। इस प्रकार प्रस्तुत प्रकीर्णक में जैन संघ व्यवस्था का सजीव वर्णन किया गया है। 8. गणिविद्या - गणिविज्जा अर्थात गणितविद्या। यह जैन ज्योतिष का एक अलभ्य ग्रन्थ है। इसमें 82 गाथाएँ हैं। इसकी शैली पद्यात्मक है। इसमें मुख्य रूप से नौ विषयों का निरूपण किया गया है - 1. दिवस 2. तिथि 3. नक्षत्र 4. करण 5. ग्रहदिवस 6. मुहूर्त्त 7. शकुन 8. लग्न और 9. निमित्त। इस प्रकीर्णक के अनुसार दिवस से तिथि, तिथि से नक्षत्र, नक्षत्र से करण, करण से ग्रह, ग्रह से मुहूर्त, मुहूर्त्त से शकुन, शकुन से लग्न, लग्न से निमित्त बलवान होता है। गणिविद्या में सामान्यतया दीक्षा, विहार, लोच, अध्ययन, आचार्य-पद समाधिमरण आदि के लिए शुभाशुभ तिथियों एवं नक्षत्रों का वर्णन किया गया है। इसी के साथ करण, शकुन आदि का भी उल्लेख किया गया है। 9. देवेन्द्रस्तव - इस प्रकीर्णक में बत्तीस देवेन्द्रों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है अत: इसका नाम देवेन्द्रस्तव है। इसमें 307 गाथाएँ हैं। इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में किसी श्रावक द्वारा देवेन्द्रों से पूजित ऋषभ आदि चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। उसके पश्चात भवनपति आदि इन्द्रों का स्वरूप बताया गया है तथा सिद्धशिला की महिमा पूर्ण स्तुति की गई है। 10. मरणसमाधि - मरणसमाधि का अपरनाम मरणविभक्ति भी है। इसमें 663 गाथाएँ हैं। यह अन्य सभी प्रकीर्णकों में बड़ा है। यह प्रकीर्णक निम्न आठ ग्रन्थों के आधार पर रचा गया है - 1. मरणविभत्ति 2. मरणविशोधि 3. मरण समाधि 4. संलेखनाश्रुत 5. भक्तपरिज्ञा 6. आतुर प्रत्याख्यान 7. महाप्रत्याख्यान 8. आराधनापताका ।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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