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________________ जैन आगम : एक परिचय ...51 त्याग, पूर्वकृत दुष्कृत्यों की आलोचना, नि:स्पृहवृत्ति एवं निःशल्य भाव पूर्वक साधना करते हुए प्रसन्नता पूर्वक मृत्यु स्वीकार करने को संथारा कहा है। __वर्तमान में काल ज्ञानी (मृत्यु की सूचना देने वाले एवं समाधि की गारंटी देने वाले) गीतार्थ गुरुवरों का अभाव होने से निराकार (छूट रहित) अनशन या संथारा करने का निषेध है। भविष्य ज्ञान के अभाव में अनशन या संथारा करके भी आर्तध्यान वश दुर्गति हो सकती है। अतः इस कलिकाल में प्रतिदिन एकएक उपवास का प्रत्याख्यान लेकर ही सागारी (छूटवाला) अनशन करने की अनुज्ञा है। मूर्तिपूजक गच्छों में सागारी अनशन ही शास्त्र युक्त माना गया है जबकि अन्य संप्रदाय (स्थानकवासी, तेरहपंथी एवं दिगम्बर) निराकार अनशन या संथारा भी करवाते हैं। इस ग्रन्थ में 123 गाथाएँ हैं। इसके रचयिता का नाम अज्ञात है। इस प्रकीर्णक में ग्रन्थकार संथारा का महत्त्व बतलाते हुए कहते हैं कि जैसे पर्वतों में मेरू, समुद्रों में स्वयम्भूरमण और तारिकाओं में चन्द्र श्रेष्ठ है वैसे ही सुविहित आराधनाओं में संथारा सर्वोत्तम है।136 इसमें संथारा ग्रहण करने वाली महान आत्माओं जैसे- अर्णिकापत्र चिलातीपुत्र, गजसुकुमाल, अवन्ति कुमार आदि का संक्षेप में परिचय दिया गया है। इसमें यह भी प्रतिपादित है कि संथारा करने वाला साधक सकल जीवों से क्षमायाचना करके मैत्री भाव स्थापित करता है और पूर्व संचित कर्मों का क्षय करता हुआ तीसरे भव में मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। 7. गच्छाचार- गच्छ अर्थात संघ या समुदाय। गच्छ में रहने वाले साधुसाध्वियों के आचार का वर्णन करने वाला होने से इसका नाम गच्छाचार है। इसमें 137 गाथाएँ हैं। यह प्रकीर्णक महानिशीथ, बृहत्कल्प एवं व्यवहारसूत्र के आधार पर लिखा गया है।137 ___ इस प्रकीर्णक में मुख्य रूप से गच्छ कैसा हो, गच्छाचार्य कैसे हों एवं गच्छ में रहने वाले साधु कैसे हो? आदि का सुन्दर प्रतिपादन किया गया है। इसमें गच्छ को सुदृढ़ एवं प्रभावशाली बनाने के उद्देश्य से उपदेश देते हुए कहा गया है कि साधु को साध्वी से अधिक परिचय नहीं रखना चाहिए, क्योंकि उनका परिचय अग्नि और विष के समान है। जैसे अग्नि के समीप घी रहने से वह पिघलता ही है वैसे ही मुनि के संसर्ग से साध्वी का चित्त विचलित हो सकता
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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