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________________ 50... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण प्रस्तुत प्रकीर्णक में मन को बंदर की उपमा दी गई हैं और अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह पालन को मन वशीकरण का अमोघ उपाय बतलाया है। इसके अन्त में भक्तपरिज्ञा का फल बताते हुए कहा है कि जघन्य साधक सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होता है, मध्यम साधक अच्युत कल्प में पैदा होता है और उत्कृष्ट साधक सर्वार्थसिद्ध विमान अथवा सिद्ध पद को प्राप्त करता है। 5. तन्दुलवैचारिक- तन्दुल का अर्थ- चावल है। तन्दुलवैचारिक शब्द का आशय यह है कि सौ वर्ष का वृद्ध पुरुष कितने चावल खा सकता है, उसकी संख्या पर विशेष रूप से चिन्तन करने के कारण उपलक्षण से इसका नाम तन्दुलवैचारिक रखा गया है।135 इस लाक्षणिक नामकरण का अन्य आशय क्या हो सकता है यह विद्वानों के लिए अन्वेषणीय है। इसमें प्राकृत भाषा की 149 गाथाएँ हैं। बीच-बीच में कुछ गद्य सूत्र भी हैं। इसमें प्रमुखतया मानव जीवन के विभिन्न पक्षों, जैसे- गर्भावस्था, मानवीय शरीर की संरचना, उसकी शतायु के दस विभाग, उनमें होने वाली शारीरिक स्थितियाँ एवं उसके आहार आदि के विषय में विस्तृत विवेचन किया गया है। व्यावहारिक दृष्टि से काल की परिगणना करते हुए बताया गया है कि जिस तरह मुहूर्त, ऋतु, मास, वर्ष आदि का क्षय होता है उसी भाँति शरीर भी एक दिन नष्ट हो जाता है। यह व्याधि का मन्दिर है अतः देह के प्रति आसक्ति कम करने का उपदेश दिया गया है। इस ग्रन्थ में नारी की प्रकृति एवं उसकी विकृति का भी चित्रण किया गया है। नर की प्रधानतया उपदेश प्रवृत्ति होने से नर के आध्यात्मिक पतन में निमित्त रूप बनती नारी का स्वरूप वर्णन करते हुए उसके व्युत्पत्तिपरक अनेक नामों की चर्चा की गई है, जैसे-नारी का पर्यायवाची 'प्रमदा' शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए कहा है- 'पूरिसे मत्ते करंति त्ति पमयाओ' अर्थात पुरुष को कामोन्मत्त करती है इसलिए नारी प्रमदा कहलाती है। इसी तरह स्त्री के पर्यायवाची रामा, अंगना, ललना, वनिता आदि शब्दों की भी सटीक व्युत्पत्ति की गई हैं। इन व्युत्पत्तियों के माध्यम से अशुचि भावना को स्पष्ट किया गया है। 6. संस्तारक- संस्तारक का सामान्य अर्थ है- बिस्तर या शय्या है। जैन परम्परा में संस्तारक से तात्पर्य जीवन के अन्तिम समय में आत्मनिरीक्षण द्वारा मृत्यु-शय्या पर स्थिर होकर समाधि मरण प्राप्त करना है। शोधकर्ताओं ने ममत्व
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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