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54... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
उक्त प्रकीर्णकों के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रकीर्णक हैं। उनकी विषयवस्तु तत्संबंधी सूत्रों से समझ लेनी चाहिए। इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन धर्म में आगमों को सर्वोच्च सम्मान प्राप्त हैं। व्यक्ति अपना आत्म-कल्याण कैसे कर सके, इसके विभिन्न आयाम प्रतिपादित हैं। संक्षेप में यथार्थ ज्ञाता और यथार्थ वक्ता के वचन ही आगम हैं। इन आगम ग्रन्थों का विधि पूर्वक अध्ययन करने वाला साधक जन्म-मरण की परम्परा का उन्मूलन कर स्वयमेव यथार्थ ज्ञाता बन जाता है।
यहाँ उल्लेखनीय है कि जिनागमों में मात्र आवश्यक सूत्र, दशवैकालिक के चार अध्ययन सूत्रत: और पांचवाँ केवल अर्थतः श्रावक पढ़ सकता है। इससे अधिक पढ़ने का अधिकार उसे नहीं है, ऐसा कई शास्त्रों में उल्लेख है। आराधना का हेतु होने से चउ:सरण, आतुरप्रत्याख्यान, भक्तपरिज्ञा एवं मरणसमाधि ये चार प्रकीर्णक भी श्रावक-श्राविका वर्ग गुर्वाज्ञा से तीन-तीन आयंबिल करके पढ़ सकते हैं।
साध्वी वर्ग आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन एवं आचारांग- इन चार सूत्रों का योगोद्वहन करके अध्ययन कर सकती हैं। प्रकीर्णकों में उपरोक्त चारों भी पढ़ सकते हैं। पूज्य आरक्षितसूरिजी के पश्चात साध्वी समुदाय को अधिक आगमों के अध्ययन आदि का निषेध किया गया है। तपागच्छ में उपरोक्त प्रणालिका जारी है।
प्राच्य संस्कृति, परम्परा एवं धार्मिक नियमोपनियमों की जानकारी का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है प्राचीन साहित्य। जैन परम्परा की अमूल्य श्रुत निधि आगम के नाम से जानी जाती है। प्रस्तुत अध्याय में जैन आगमों का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी विषयवस्तु से अवगत करवाने का प्रयास किया है। इससे जैन श्रुत गंगा घर-घर तक पहुँच पाएगी। सन्दर्भ-सूची 1. संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 106 2. पाइयसद्दमहण्णवो, पृ. 11 3. आगमेत्ता आणवेज्जा। आचारांगसूत्र, 1/5/149
4. स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 338 ... 5. भगवतीसूत्र, अभयदेव टीका, 5/3/192