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________________ 48... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण प्राणियों को उद्बोधन देते हुए कहा गया है - 'हे चेतन ! संसार का कोई भी पदार्थ शरण दाता नहीं है, इसलिए तूं किसी अन्य की शरण में न जाकर अरिहंत, सिद्ध, साधु एवं केवली प्ररूपित धर्म की शरण को स्वीकार कर, यही सच्चा शरण है।' यहाँ चार शरण की मुख्यता होने से इस ग्रन्थ का नाम चतुःशरण है। ये चार शरण ही आत्मा की कुशलता के परम हेतु हैं तथा कुशल का अनुबन्ध कराने वाले हैं अतएव इसे कुशलानुबन्धी भी कहा जाता है। इस प्रकीर्णक में षडावश्यक पर प्रकाश डालते हुए बतलाया गया है कि सामायिक आवश्यक से चारित्र की शुद्धि होती है । चतुर्विंशति जिनस्तव से दर्शन की विशुद्धि होती है। वन्दन आवश्यक से ज्ञान में निर्मलता आती है । प्रतिक्रमण आवश्यक से ज्ञान, दर्शन और चारित्र तीनों की शुद्धि होती है। कायोत्सर्ग से आत्मविशुद्धि होती है और प्रत्याख्यान से पुरुषार्थ की शुद्धता होती है। 132 चउसरण (चतु:शरण), आउर पच्चक्खाण (आतुर प्रत्याख्यान), भत्त परिण्णा (भक्त परिज्ञा) और मरणसमाहि पयण्णा (मरण समाधि परिज्ञा) इन चार प्रकीर्णकों की रचना प्रभु श्रीमहावीर के स्वहस्त दीक्षित श्री वीरभद्रसूरिजी नामक आचार्य ने की है- ऐसी पूर्वाचार्यों की मान्यता है। मूलाचार नामक दिगम्बर ग्रन्थ में भी आतुरप्रत्याख्यान की महदंश गाथाएँ उद्धृत की जाने से यह ग्रन्थ उससे प्राचीन सिद्ध हो जाता है। चतुःशरण प्रकीर्णक पर पूज्य भुवनतुंग की वृत्ति एवं पूज्य गुणरत्न की अवचूरि भी प्राप्त होती है। यह ग्रन्थ प्राकृत पद्य में है। 2. आतुरप्रत्याख्यान - आतुर अर्थात रोगादि यानी मारणान्तिक कष्ट उपस्थित होने पर, प्रत्याख्यान अर्थात देह ममत्व का विसर्जन कर देना, आतुर प्रत्याख्यान कहलाता है। यह प्रकीर्णक समाधिमरण से सम्बन्धित है, इस दृष्टि से इसे ‘अन्तकाल’ प्रकीर्णक भी कहा गया है। इसका एक नाम बृहदांतुरप्रत्याख्यान भी है। यह प्राकृत पद्य की 70 गाथाओं में निबद्ध है। इसका कुछ भाग गद्य में भी है। इसके रचयिता वीरभद्रसूरि आचार्य है। इस प्रकीर्णक में मुख्यतया मरण के तीन प्रकारों का वर्णन किया गया है। 1. बाल मरण- मिथ्या दृष्टि आत्मा का मरण 2. बाल पंडित मरण - अविरत सम्यग्दृष्टि एवं देशविरतिधर का मरण और 3. पंडित मरण- विरतिधर साधु-साध्वी का मरण । मिथ्यादृष्टि जीव
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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