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________________ 46... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण हरिभद्रसूरिजी ने क्षतिग्रस्त हस्त प्रति के आधार पर जिसकी पुनर्रचना की थी, वही महानिशीथ वर्तमान में 4544 पद परिमाण में उपलब्ध है। ____6. जीतकल्पसूत्र- जीत का अर्थ परम्परागत आचार, मर्यादा, व्यवस्था या प्रायश्चित से सम्बन्धित व्यवहार है। अशुभ से निवृत्त होकर शुभ में प्रवृत्ति करना व्यवहार कहलाता है। इस सूत्र में जैन मुनि के आचार सम्बन्धी मर्यादाओं (प्रायश्चित्तों) का विधान है अत: इसका जीतकल्प नाम अन्वर्थक है। इसमें 103 गाथाएँ हैं। इसके रचयिता सुप्रसिद्ध भाष्यकार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण माने जाते हैं। इसमें मुख्य रूप से प्रायश्चित्त के दस भेदों का निरूपण हैं। तत्पश्चात इसमें यह बताया गया है कि अन्तिम के दो प्रायश्चित्त अनवस्थाप्य और पारांचिक चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु स्वामी के समय तक ही प्रवर्तित थे, उसके पश्चात लुप्त हो गए। वर्तमान में अधिक से अधिक आठ प्रायश्चित्त दिए जाते हैं। चूलिकासूत्र जिन ग्रन्थों में अवशिष्ट विषयों का वर्णन या वर्णित विषयों का स्पष्टीकरण किया गया हो वे चूलिका सूत्र कहलाते हैं। नन्दीचूर्णि के अनुसार मूलग्रन्थ में प्रतिपादित या अप्रतिपादित अर्थ का संक्षेप में निरूपण करने वाली ग्रन्थ पद्धति को चूला कहते हैं।129 दशवैकालिक और महानिशीथ के अन्त में भी चूलिकाएँचूलाएँ-चूडाएँ प्राप्त होती हैं। वर्तमान युग की भाषा में इसे परिशिष्ट कह सकते हैं। नन्दी एवं अनुयोगद्वार ये दोनों सूत्र अध्ययन के लिए परिशिष्ट का कार्य करते हैं। अत: मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में इन दो आगमों को चूलिका रूप माना गया है। 1. नन्दीसूत्र- नन्दी शब्द का सामान्य अर्थ है आनन्द। चूर्णिकार ने इसके तीन अर्थ किए हैं प्रमोद, हर्ष और कंदर्प।130 यहाँ आनंद अर्थ अभिप्रेत है। इस आगम में ज्ञान के स्वरूप का वर्णन है और ज्ञान ही सबसे बड़ा आनंद है अत: इस ग्रन्थ का नाम नन्दी रखा गया है। नन्दीसूत्र की रचना गद्य और पद्य मिश्रित है। इसमें एक अध्ययन, 57 गद्यसूत्र और 97 पद्य गाथाएँ हैं। इसका श्लोक परिमाण 700 है। इसके प्रारम्भ में भगवान महावीर को नमस्कार किया गया है। उसके पश्चात जिनशासन, 24 तीर्थंकर, 11 गणधर, जिनप्रवचन, सुधर्मा आदि स्थविरों को स्तुति पूर्वक वंदन किया है। इसके पश्चात पाँच ज्ञानों का सुविस्तृत
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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