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________________ जैन आगम : एक परिचय ...45 के पाँच प्रकार यवमध्य एवं वज्र मध्य चन्द्रप्रतिमाओं की विधि, आचारांग आदि सूत्रों का काल एवं दस प्रकार के वैयावृत्य का वर्णन किया गया है। इस प्रकार इस आगम में साधु-साध्वी के आचार शुद्धि विषयक नियमों का विधान बतलाया गया है। 4. निशीथसूत्र- निशीथ का सामान्य अर्थ अंधकार है। यह सूत्र अपवाद बहुल है। जन सामान्य में प्रकाशित करने योग्य नहीं है, गोपनीय है इसलिए इसका नाम निशीथ है। दूसरी परिभाषा के अनुसार जिस प्रकार निशीथ अर्थात कतकफल को पानी में डालने से कचरा नीचे बैठ जाता है इसी प्रकार इस शास्त्र के अध्ययन से भी आठ प्रकार के कर्मरूपी मल का उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशम हो जाता है, इसलिए इसका नाम निशीथ है।128 इस सूत्र अध्ययन के अधिकारी परिणामक (परिपक्व बुद्धि सम्पन्न) साधक ही होते हैं। इसमें बीस उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में गुरु मासिक प्रायश्चित्त का वर्णन है। द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम उद्देशकों में लघुमासिक प्रायश्चित्त के विषयों का निरूपण है। छठवें से लेकर ग्यारहवें उद्देशक तक गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त का प्रतिपादन है। बारहवें से उन्नीसवें तक लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त का उल्लेख है। बीसवें उद्देशक में प्रायश्चित्त दान की विधि कही है। सार रूप में कहें तो निशीथ के उन्नीस उद्देशकों में प्रायश्चित्त का विधान है और बीसवें उद्देशक में प्रायश्चित्त देने की विधि दी गई है। इस प्रकार यह ग्रन्थ प्रायश्चित्त के माध्यम से जीवन शुद्धि का पथ प्रशस्त करता है। वर्तमान में यह आगम 812 श्लोक सम्बन्धी संख्या में उपलब्ध है। 5. महानिशीथसत्र- इस ग्रन्थ नाम से ऐसा ज्ञात होता है कि यह निशीथसूत्र का बृहद् रूप है। इसमें छः अध्ययन और दो चूलिकाएँ हैं। इसका गाथा परिमाण 4554 हैं। इसके प्रथम अध्ययन में पापरूपी शल्य को दूर करने के लिए अठारह पाप स्थानकों का वर्णन है। दूसरे में कर्म विपाक एवं पापों की आलोचना पर प्रकाश डाला गया है। तीसरे एवं चौथे अध्ययन में कशील साधुओं से दूर रहने का निर्देश है। पाँचवें में गच्छ के स्वरूप का प्रतिपादन है। छठवें अध्ययन में प्रायश्चित्त के दस भेदों एवं आलोचना के चार प्रकारों का विवेचन है। चूलिकाओं में सुसढ़ आदि के कथानक हैं। प्राचीन मान्यता के अनुसार ये मूल ग्रन्थ दीमकों के द्वारा क्षतिग्रस्त हो चुका था। तत्पश्चात आचार्य
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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