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44... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
2. बृहत्कल्पसूत्र- इस सूत्र का अपर नाम कल्प भी है। जब पर्युषणाकल्प कल्पसूत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ तब इसका नाम बृहत्कल्प हो गया। विद्वानों की मान्यतानुसार बृहत्कल्प-व्यवहारसूत्र का पूरक है, क्योंकि दोनों में साध्वाचार का निरूपण है।127 ___कल्प' शब्द का अर्थ है- मर्यादा, आचार संहिता आदि। इसमें श्रमण धर्म की मर्यादा अथवा आचार का प्रतिपादन होने से इसका 'बृहतकल्प' नाम सार्थक है। इसमें छ: उद्देशक, इक्यासी अधिकार और 206 सूत्र हैं। इसका श्लोक परिमाण 400 या 473 है। इसके प्रथम उद्देशक में मुनि की मासकल्प या विहारकल्प सम्बन्धी मर्यादाएँ बताई गई है। द्वितीय उद्देशक में उपाश्रय एवं शय्यातर सम्बन्धी मर्यादाओं का वर्णन किया गया है। तीसरे उद्देशक में साधुसाध्वी के पारस्परिक व्यवहार की मर्यादाओं पर प्रकाश डाला गया है। चतुर्थ उद्देशक में रात्रिभोजन को दोषयुक्त बताकर उसके सेवन का निषेध किया गया है। पंचम उद्देशक में ब्रह्मचर्य एवं आहार सम्बन्धी नियमों पर विचार किया गया है। छठवें उद्देशक में मुनि के लिए छः प्रकार के असत्य वचनों को वर्जनीय माना गया है। इस प्रकार इस ग्रन्थ में साधु-साध्वी के आचार व्यवहार से सम्बन्धित अनेक नियमों का प्रतिपादन किया गया है।
3. व्यवहारसूत्र- व्यवहार का अर्थ है- आलोचना, शुद्धि या प्रायश्चित्त। इस ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय आलोचना एवं प्रायश्चित्त होने से इस सूत्र का नाम व्यवहार रखा गया है। इसमें दस उद्देशक हैं।
प्रथम उद्देशक में आलोचक मुनि कैसा हो और आलोचना किसके समक्ष की जाए इसका वर्णन है। द्वितीय उद्देशक में समान सामाचारी वाले साधुओं की प्रायश्चित्त विधि कही गई है। तीसरे उद्देशक में विहार सम्बन्धी नियमों का विवेचन है। इसमें आचार्यादि पद स्थापना कब और किस विधि पूर्वक की जाए इसका भी सम्यक निरूपण है। चतुर्थ उद्देशक में आचार्यादि के साथ विहार एवं वर्षावास में कितने साधु रहने चाहिए इसका वर्णन है। पाँचवें उद्देशक में प्रवर्तिनी आदि साध्वियों की विहारचर्या आदि का निरूपण है। छठवें उद्देशक में आचार्यादि की विशिष्टता एवं सम्बन्धियों के यहाँ जाने की विधि का प्रतिपादन है। सातवें उद्देशक में दीक्षा के योग्य पात्र आदि का वर्णन है। आठवें उद्देशक में शय्या आदि ग्रहण करने की विधि बतलाई गई है। नवें उद्देशक में शय्यातर के अधिकृत आहार आदि को अकल्पनीय बताया है। दसवें उद्देशक में व्यवहार