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जैन आगम : एक परिचय ...43 माध्यम से प्रतिपाद्य विषयों को स्पष्ट किया गया है। इसमें सात द्वार एवं 811 गाथाएँ हैं। इन द्वारों में अनुक्रमश: प्रतिलेखना, पिण्डैषणा, उपधि, अनायतन, प्रतिसेवना, आलोचना और विशुद्धि की चर्चा की गई है। संक्षेपत: इस ग्रन्थ में मुनिचर्या का सुन्दर विवेचन है। वर्तमान संस्करण में इसका श्लोक परिमाण 1460 है। छः छेदसूत्र
छेद शब्द का सम्बन्ध चारित्र एवं प्रायश्चित्त दोनों से है। चारित्र पाँच प्रकार के कहे गए हैं- 1. सामायिक 2. छेदोपस्थापनीय 3. परिहार विशुद्धि 4. सूक्ष्मसंपराय और 5. यथाख्यात चारित्र। प्रायश्चित्त के दस प्रकार हैं- आलोचना, प्रतिक्रमण, तदुभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, मूल, अनवस्थाप्य और पारांचिका
वर्तमान में सामायिक और छेदोपस्थापना ये दो चारित्र ही जीवन्त है, शेष तीन चारित्र विच्छिन्न हो गए हैं। सामायिक चारित्र अल्पकालिक होता है एवं छेदोपस्थापना चारित्र जीवन पर्यन्त रहता है। अत: यह संभव है कि छेदोपस्थापना चारित्र से प्रायश्चित्त का सम्बन्ध होने के कारण इनका नाम छेदसूत्र दिया गया हो। मूल सूत्रों की तरह छेदसूत्रों की संख्या में भी मत वैभिन्य है। सामाचारीशतक में प्रतिपादित छ: छेदसूत्रों का संक्षिप्त वर्णन निम्न है
1. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र- दशाश्रुतस्कन्ध के दो नाम मिलते हैं। नन्दीसूत्र125 में इसका नाम ‘दशा' एवं स्थानांगसूत्र में इसका नाम 'आयारदशा' है।126 इसमें दस अध्ययन हैं अत: इसका नाम दशा है। इसमें मुनि जीवन के आचार एवं उसमें लगने वाले दोषों से बचने के उपायों का निरूपण हैं इस तरह विषय प्रतिपादन की अपेक्षा से इसका नाम 'आयारदशा' है।
इस सूत्र के दस अध्ययनों के अन्तर्गत पहले में बीस असमाधिस्थान, दूसरे में इक्कीस शबल दोष, तीसरे में गुरु की तैंतीस आशातनाएँ, चौथे में आचार्य की आठ गणि संपदाएँ, पाँचवें में दस चित्तसमाधि के स्थान, छ8 में ग्यारह उपासक प्रतिमाएँ, सातवें में बारह भिक्षु प्रतिमाएँ, आठवें में पर्युषणा सामाचारी, नौवें में तीस महामोहनीय स्थान और दसवें में नौ निदानों का वर्णन किया गया है। __इस प्रकार इस आगम में चित्त समाधि एवं धर्म स्थिरता की सुन्दर प्रेरणा दी गई है। वर्तमान संस्करण में इसका श्लोक परिमाण 1380 माना गया है।