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38...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रतिपादन करते समय लगे हुए दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ।
फिर दूसरा खमासमण देकर कहें - 'इच्छ. संदि. भगवन् अणुओगपडिक्कमणत्थ काउस्सग्ग करहं' हे भगवन्! आपकी इच्छा पूर्वक अनुयोग के प्रतिक्रमणार्थ कायोत्सर्ग करता हूँ। फिर अणुओगपडिक्कमणत्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थसूत्र बोलकर आठ श्वासोश्वास (एक नमस्कार मन्त्र) का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में नमस्कारमन्त्र बोलें। फिर गुरु को वन्दन करें।80
• आचारदिनकर के अनुसार वाचनाचार्य मुनि वाचना के दिनों में प्रतिदिन प्रभातकाल का ग्रहण करें और स्वाध्याय प्रस्थापना करें।
• यदि आगमिक व्याख्याओं (नियुक्ति, चूर्णि, टीका आदि) की अर्थ वाचना देनी हो तो कालग्रहण एवं स्वाध्याय प्रस्थापना न करें।
• यदि वाचनाक्रम में वाचना दी-ली जा रही हो तो संघट्ट ग्रहण और आयंबिल आदि तप का प्रत्याख्यान न करें।81 वाचनाचार्य पदस्थापना विधि
जो मुनि आगम सूत्रों को विधि पूर्वक धारण किया हुआ हो, गीतार्थ हो, अनुवर्तक आदि गुणों से युक्त हो, वाचना देने में समर्थ हो और अध्यापक के सभी लक्षणों से सम्पन्न हो, उसे शुभ मुहूर्त में वाचनाचार्य पद पर स्थापित किया जाता है।82
विधिमार्गप्रपा में वाचनाचार्यपद पर स्थापित करने की निम्न विधि उल्लेखित है83_
देववन्दन - सर्वप्रथम सुयोग्य, स्वच्छ एवं पवित्र क्षेत्र में समवसरण (नन्दी) की रचना करवाएं। उसके बाद लूंचन किए हुए और एक कंबल परिमाण वाला आसन धारण किए हुए वाचनापद योग्य शिष्य को गुरु अपनी बायीं ओर बिठाएं। फिर आचारदिनकर के मतानुसार समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दिलवाएं। उसके बाद वाचना पदग्राही गुरु को द्वादशावर्त्तवन्दन करें।
तत्पश्चात एक खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन कर कहें - 'इच्छाकारेण तुब्भे अहं वायणारियपय अणुजाणावणियं वासनिक्खेवं करेह' हे भगवन्! आपकी इच्छा हो तो वाचनाचार्य पद की अनुमति देने हेतु वासचूर्ण का निक्षेप करिए। तब गुरु कहें- 'करेमो' करता हूँ।