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वाचना दान एवं ग्रहण विधि का मौलिक स्वरूप... 37
एवं अर्थ अध्ययन) की विधि (अध्ययन का कार्य) शुरू करता हूँ। फिर दूसरा खमासमण देकर कहें 'इच्छा. संदि भगवन् अणुओगआढवणत्थं काउस्सग्गं करेमो' हे भगवन्! आपकी आज्ञा पूर्वक अनुयोग स्थापना के लिए कायोत्सर्ग करता हूँ। इतना कहकर 'अणुओगआढवणत्थं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्ण करके प्रकट में नमस्कारमन्त्र बोलें।
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वाचना अनुज्ञा तदनन्तर वाचनादाता एक खमासमण देकर कहें 'इच्छा. संदि. भगवन् वायणं संदिसावेमि' हे भगवन्! मैं वाचनादान की आज्ञा ग्रहण करता हूँ।
भगवन्
'इच्छा. संदि. आज्ञा को स्वीकार करता हूँ ।
फिर दूसरा खमासमण देकर कहें पडिगाहेमि' - हे भगवन्! वाचनादान की फिर तीसरा खमासमण देकर कहें 'इच्छा संदि भगवन् बइसणं संदिसावेमि' - हे भगवन्! वाचनादान के लिए आसन पर बैठने की आज्ञा
लेता हूँ।
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फिर चौथा खमासमण देकर कहें 'इच्छ. संदि. भगवन् बइसणं ठामि' - हे भगवन्! मैं आपकी आज्ञापूर्वक आसन पर बैठता हूँ ।
• इस तरह अनुयोग प्रवर्त्तन, वाचना दान एवं आसन पर बैठने की अनुमति प्राप्त करें। फिर स्वयं के आसन पर उपविष्ट होकर एवं मुख के आगे मुखवस्त्रिका रखते हुए उचित स्वर से वाचना दें।
• आचारदिनकर के अनुसार सर्वप्रथम दशवैकालिकसूत्र की वाचना दें। फिर आवश्यक, उत्तराध्ययन, आचारांगसूत्र की वाचना दें। फिर शेष आगमों की वाचना अध्येता की रूचि के अनुसार यथायोग्य क्रम से या उत्क्रम से दें। 79 वाचना दान के समय वाचना ग्राहीता सभी साधु अप्रमत्त होकर वाचना ग्रहण करें।
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वायणं
वाचनादान की समापन विधि यदि उद्देशक की वाचना पूर्ण हो तो वाचनाग्राही वाचनाचार्य को थोभवन्दन करें तथा अध्ययन आदि की वाचना पूर्ण हो तो द्वादशावर्त्तवन्दन करें। तदनन्तर वाचनादाता मुनि गुरु के समक्ष एक खमासमण देकर कहें 'इच्छा. संदि. भगवन् अणुओगपडिक्कमहं' हे भगवन्! आपकी अनुमति पूर्वक अनुयोग (नन्दी आदि आगमों के सूत्रार्थ) का