SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 24...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में जो कुछ कहा है वह सत्य है, मिथ्या नहीं है अथवा 'तहत्ति' शब्द पूर्वक गुरु वचनों का समर्थन करना चाहिए। 4. प्रतिपृच्छा - कहीं सूत्र या अर्थ समझ में न आए अथवा सुनने से रह जाए तो आवश्यकता के अनुसार प्रतिपृच्छा करनी चाहिए, किन्तु निरर्थक तर्कवितर्क नहीं करना चाहिए। ___5. मीमांसा - गुरु के वचनों का आशय समझने के लिए उनसे पुनः विचार-विमर्श करते हुए सूत्र पाठ की प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। ___6. प्रसंगपारायण – सुने हुए श्रुत प्रसंग का पारायण करना चाहिए। - 7. परिनिष्ठा - तत्त्व निरूपण में पारगामिता प्राप्त करना चाहिए। इस श्रवण-विधि से श्रुतज्ञान की समीचीन प्राप्ति होती है अत: जिज्ञासु को आगम शास्त्र का अध्ययन विधिपूर्वक ही करना चाहिए। श्रुत ग्रहण के आवश्यक चरण बुद्धि के आठ गुणों से सम्पन्न व्यक्ति श्रुतज्ञान का अधिकारी बनता है क्योंकि आगम शास्त्र के अर्थ ग्रहण में ये आठ गुण हेतुभूत माने गये हैं। जो धीरपुरुष पूर्वो के ज्ञाता हैं वे इस आगम ज्ञान के ग्रहण को ही श्रुतज्ञान की उपलब्धि मानते हैं। श्रुतज्ञान आत्मा का ऐसा अनुपम धन है, जिसके सहयोग से शाश्वत सुख की प्राप्ति हो सकती है। इसलिए प्रत्येक जिज्ञासु को बुद्धि के अष्ट गुणों से युक्त होकर श्रुत का ग्रहण करते हुए उसका अधिकारी बनना चाहिए। नन्दीसूत्र में श्रुतग्रहण की निम्न विधि बताई गई हैं32 - 1. शुश्रुषा - श्रुत को गुरु मुख से सविनय सुनने की इच्छा रखना। सर्वप्रथम शिष्य गुरु के चरणों में वन्दन करके उनके मुखारविन्द से कल्याणकारी सूत्र एवं अर्थ सुनने की जिज्ञासा अभिव्यक्त करें। जिज्ञासा के अभाव में ज्ञानप्राप्ति नहीं हो सकती। 2. प्रतिपृच्छा - सूत्र या अर्थ सुनने पर कहीं शंका हो तो गुरु से प्रतिपृच्छा (प्रतिप्रश्न) कर शंका का निवारण करें। प्रश्नों के उत्तर श्रद्धा पूर्वक प्राप्त करने से तर्क शक्ति पुष्ट होती है तथा ज्ञान निर्मल बनता है। 3. श्रवण - प्रश्न करने पर गुरु द्वारा जो उत्तर दिये जायें, उन्हें ध्यान पूर्वक सुनें। 4. ग्रहण - सूत्र, अर्थ एवं प्राप्त समाधान को चित्त की एकाग्रता पूर्वक
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy