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ग्रहण करें अन्यथा सुना हुआ ज्ञान विस्मृत हो जाता है।
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5. ईहा – हृदयङ्गम किये हुए ज्ञान का बार-बार चिन्तन-मनन करें जिससे श्रुतज्ञान भविष्य में स्मृति का विषय बन सके। अधीत श्रुत को धारणा रूप बनाने के लिए पर्यालोचन आवश्यक है।
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6. अपाय
करे कि 'जो गुरु ने कहा है वही यथार्थ है' ऐसा निर्णय करें ।
7. धारणा स्थिरीकरण करें।
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प्राप्त किये हुए ज्ञान पर चिन्तन-मनन करके यह निश्चय
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8. करण
आगम विहित अनुष्ठान का सम्यक् आचरण करें।
ये सभी गुण क्रियारूप हैं और गुण क्रिया के द्वारा ही व्यक्त होते हैं अतः
इन सभी की परिपालना करनी चाहिए ।
1. शिक्षित 2. स्थित 3. चित्त
श्रुत ग्रहण करते समय निम्न सात सूत्र भी ध्यातव्य हैं - - पाठों को कण्ठस्थ करना । आवश्यक सूत्र- प कण्ठस्थ किये हुए सूत्रार्थ को हृदय में धारण करना। आगम के - पाठों को इस तरह धारण करना कि वे स्मृति सूत्र - प
में शीघ्र उभर आए । 4. मित
सीखने योग्य सूत्रों के वर्ण आदि का परिमाण जानना । 5. परिचित - गृहीत सूत्रों का अनुलोम या प्रतिलोम पद्धति से पुनरावर्त्तन
करना।
वाचना दान एवं ग्रहण विधि का मौलिक स्वरूप... 25
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परिवर्तना और अनुप्रेक्षा के द्वारा निर्णीत ज्ञान का
6. नामसम अवस्थित रखना।
7. घोषसम वाचनाचार्य द्वारा सूत्र-पाठों का उच्चारण जिस घोष (उदात्त- अनुदात्त- स्वरित) के साथ किया जाए, उसी के समान घोष ग्रहण
करना।
अधीत सूत्रों को स्वयं के नाम के समान सदा स्मृति में
उपर्युक्त अङ्गों का परिपालन करते हुए श्रुताध्ययन करना चाहिए । सूत्र सीखने के नियम
विशेषावश्यकभाष्य में सूत्र सीखने के दस नियम बतलाए गये हैं जो
निम्न हैं34_
1. अहीनाक्षर सीखते समय सूत्र के अक्षर हीन (कम) न हो।
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