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________________ वाचना दान एवं ग्रहण विधि का मौलिक स्वरूप...23 3. चारित्रार्थ – सम्यक् चारित्र की निर्मलता के लिए। 4. व्युद्ग्रह-विमोचनार्थ - दूसरों को दुराग्रह से विमुक्त करने के लिए। 5. यथार्थभाव- ज्ञानार्थ - सूत्र शिक्षण के द्वारा यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के लिए। ___सामान्यतया उक्त कारणों को लक्ष्य में रखते हुए सूत्र-पाठ सीखना चाहिए। शिक्षा (वाचना) के प्रकार ___शिक्षा ग्रहण एवं शिक्षा दान की एक विशिष्ट प्रक्रिया है वाचना। दशवैकालिकचूर्णि में शिक्षा दो प्रकार की कही गयी है29 1. ग्रहण शिक्षा – गुरु मुख से सूत्र और अर्थ को ग्रहण करना, ग्रहण शिक्षा कहलाती है। 2. आसेवन शिक्षा - जो करणीय अनुष्ठान हैं उनका सम्यक् आचरण करना और जो अकरणीय है उनका वर्जन करना, आसेवन शिक्षा है। इसमें ग्रहण शिक्षा मानसिक एवं वाचिक है तथा दूसरी आसेवन शिक्षा कायिक है, किन्तु भावत: दोनों ही शिक्षाएँ त्रियोग रूप हैं। ओघ सामाचारी और पदविभाग सामाचारी के अनुसार आचरण करना आसेवन शिक्षा है तथा गुरु के माध्यम से श्रुत पाठों का ग्रहण करना, वह ग्रहण शिक्षा है। आगम पाठ के अनुसार स्थूलिभद्र मुनि ने आचार्य भद्रबाहु से ग्रहण शिक्षा प्राप्त की थी।30 ___ संक्षेपत: सूत्रार्थ का अध्ययन करना ग्रहण शिक्षा है और तदनुरूप सम्यक् प्रवृत्ति करना आसेवन शिक्षा है। वाचना श्रवण की आगमोक्त विधि . शिष्य अथवा जिज्ञासु को गुरु के समक्ष सूत्र एवं अर्थ किस प्रकार सुनना चाहिए? इस सम्बन्ध में नन्दीसूत्र में सात नियम बतलाये गये हैं जो इस प्रकार है 31 1. मूक - जब गुरु अथवा आचार्य सूत्र या अर्थ सुना रहे हों, उस समय शिष्य को मौन पूर्वक दत्तचित्त होकर सुनना चाहिए। 2. हुंकार - गुरु-वचन श्रवण करते हुए थोड़ी-थोड़ी देर में प्रसन्नता पूर्वक स्वीकृति रूप 'हुंकार' करते रहना चाहिए। 3. बाढंकार - गुरु से सूत्र व अर्थ सुनते हुए कहना - 'गुरुदेव! आपने
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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