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________________ 22...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में को वाचना देने वाला क्लेश का अनुभव करता है और प्रायश्चित्त का भागी होता है।25 अतएव योग्य शिष्य को ही वाचना देनी चाहिए। वाचना निषेध की आपवादिक स्थितियाँ आगमिक व्याख्याओं में योग्य शिष्य को भी कुछ स्थितियों में वाचना देने का निषेध किया गया है। निशीथभाष्यकार के अनुसार द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पुरुष इनकी अनुकूलता न हों तो गुरु योग्य शिष्य को भी वाचना न दें। द्रव्य - आहार आदि की समुचित व्यवस्था या उपलब्धि न हो तथा आयंबिल के लिए ओदन, कुल्माष और सत्तु- ये तीन वस्तुएँ प्राप्त न हो। क्षेत्र - स्वाध्याय के अनुकूल क्षेत्र न हो। काल - अशिव या दुर्भिक्ष हो अथवा अस्वाध्याय का काल हो। भाव- स्वयं या शिष्य रोगी हो अथवा रूग्ण आदि की सेवा में संलग्न हो। पुरुष - वाचनाभिलाषी योगोद्वहन करने में असमर्थ हो।26 उक्त स्थितियों में योग्य शिष्य को भी वाचना देने पर प्रायश्चित्त आता है। वाचना देने एवं लेने के प्रयोजन स्थानांगसूत्र में वाचनादान के पाँच कारण आख्यात है27 - 1. संग्रहार्थ - शिष्यों को श्रुत-सम्पन्न बनाने के लिए। 2. उपग्रहार्थ - भक्त-पान और पात्रादि उपकरण प्राप्त करने की योग्यता प्रकट करने के लिए। 3. निर्जरार्थ - पूर्वबद्ध कर्मों का क्षय करने के लिए। 4. पोषणार्थ - वाचना देने से मेरा श्रुत परिपुष्ट होगा, इस प्रकार से श्रुतज्ञान को समृद्ध बनाने के लिए। 5. अव्यवच्छित्ति - श्रुत के अध्ययन-अध्यापन की परम्परा अक्षुण्ण रखने के लिए। मुख्यतया उक्त कारणों से श्रुतदान किया जाता है। सूत्र पाठ सीखने के प्रयोजन तृतीय अंग आगम स्थानांगसूत्र में सूत्र-पाठ सीखने के पाँच हेतु बतलाये गये हैं28_ 1. ज्ञानार्थ - नये-नये तत्त्वों का परिज्ञान करने के लिए। 2. दर्शनार्थ - सम्यक् श्रद्धान के उत्तरोत्तर पोषण के लिए।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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