________________
20...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में उसके अहं को बढ़ाता है। दुर्विनीत के लिए श्रुत रूपी औषध अहितकर है।
विनीत का श्रुतज्ञान ही इहलोक और परलोक में फलदायी होता है वही अविनीत को दी गयी विद्या जल रहित धान्य के समान कभी फलवती नहीं होती है। श्रुत सम्पन्न गुरु वाचना देते समय इस बात का पूर्ण ख्याल रखते हैं कि जो शिष्य अपात्र हैं उन्हें सूत्रार्थ की वाचना नहीं दी जाए, क्योंकि अपात्र को वाचना देने से श्रुत की आशातना होती है और शिष्य का भी विनाश अर्थात संसार वर्द्धन होता है।
जो शिष्य शरीर से पुष्ट होने पर भी रस लोलुपता के कारण विकृति कारक द्रव्यों का परित्याग नहीं करता है और तप योग नहीं करता है उसे दिया गया श्रुत भी लाभदायी नहीं होता, क्योंकि योगोद्वहन के बिना वाचना ग्रहण (श्रुत के उद्देशन आदि रूप व्यवहार) करने का निषेध है। तप के बिना गृहीत ज्ञान वांछित फल प्रदान नहीं कर सकता। दूसरे शब्दों में साधनाहीन विद्या कभी भी फलित नहीं होती है।
आचार्य भद्रबाहु उक्त विषय को स्पष्ट करते हुए यह भी कहते हैं कि अयोग्य को अध्ययन के लिए प्रेरित करने पर वह कलह करता है। अपात्र को वाचना देने वाले प्रमत्त साधु को दुष्ट देव छल सकता है। अयोग्य को श्रुत दान देने वाले साधु की सद्गति नहीं होती तथा उसे बोधि लाभ भी प्राप्त नहीं होता। उसका सारा श्रम ऊसर भूमि में बोये बीज की भांति निष्फल होता है। अपात्र को वाचना देते हुए देखकर दूसरे वाचक सोचते हैं - अब तो हम भी अपात्र-प्रिय शिष्य को वाचना दे सकते हैं इस प्रकार अपात्र को वाचना दान करने वाले का इहलोक-परलोक दोनों बिगड़ते हैं तथा अनवस्था दोष उत्पन्न होता है, परिणामत: अविनय की परम्परा आगे बढ़ती है।21
निशीथभाष्य में कहा गया है कि जिस व्यक्ति के कान, हाथ आदि छिन्न हो, उसे आभूषण नहीं पहनाये जाते, उसी प्रकार अपात्र को वाचना भी नहीं दी जाती है। आयु पूर्ण होने पर विशिष्ट विद्याओं का विनाश होना निश्चित है, परन्तु अपात्र को वाचना देना अच्छा नहीं है।22
वाचना सुविहितों का परम आचार है अत: पात्र को ही वाचना देनी चाहिए। आगमकारों के अनुसार अयोग्य को वाचना देना और पात्र को वाचना न देना- दोनों ही प्रायश्चित्त योग्य है। अपात्र को वाचना देने पर दोष उत्पन्न होते