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16...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में विवेचन किया है। जिस श्रुताध्ययन का जो काल निश्चित है उस वय को प्राप्त नहीं हुआ मुनि अप्राप्त कहलाता है, जैसे तीन वर्ष से न्यून दीक्षा पर्याय वाला निशीथसूत्र पढ़ने की योग्यता को अप्राप्त है। आवश्यकसूत्र नहीं पढ़ा हुआ दशवैकालिक के लिए तथा दशवैकालिकसूत्र नहीं पढ़ा हुआ उत्तराध्ययन के लिए अप्राप्त है। जिस शिष्य के कांख, मूंछ आदि की जगह बालों की उत्पत्ति नहीं हुई है वह अव्यक्त कहलाता है, उसके बाद व्यक्त कहा जाता है अथवा सोलह वर्ष की उम्र तक अव्यक्त कहा जाता है, उसके बाद व्यक्त कहलाता है। अव्यक्त भिक्षु को कालिकश्रुत (अंगसूत्र एवं छेदसूत्र) की वाचना देने का निषेध है।
__ भाष्यकार ने अप्राप्त-अव्यक्त शिष्य को वाचना न देने का कारण स्पष्ट करते हुए कहा है कि अल्पवय में श्रुत को ग्रहण करने की एवं धारण करने की शक्ति भी अल्प होती है। जैसे कच्चे घड़े में डाला हुआ जल घड़े को ही नष्ट कर देता है वैसे ही जिसका आधार सुदृढ़ नहीं है, जिसमें धारणा सामर्थ्य नहीं है, उस अव्यक्त-अप्राप्त को बताये गये सिद्धान्त (छेदसूत्र आदि) एवं उनके रहस्य उसे नष्ट कर देते हैं। घट दृष्टान्त को अन्य तरह से भी समझा जा सकता है। जिस प्रकार कच्चे घड़े को अग्नि में रखकर पकाया जाता है किन्तु उसमें पानी नहीं डाला जाता उसी प्रकार अल्पवयी शिष्य को शिक्षा अध्ययन आदि से परिपक्व बनाया जाता है, किन्तु उक्त आगमों की वाचना वयस्क एवं अध्ययन के योग्य होने पर ही दी जाती है। ____ संक्षेप में कहें तो जिसने निशीथसूत्र का अध्ययन नहीं किया है, वह श्रुत से अव्यक्त है तथा जो सोलह वर्ष से कम है वह वय से अव्यक्त है। जो पर्याय से व्यक्त और श्रुत से प्राप्त हो, वही वाचनीय है। वाचनाग्राही में अपेक्षित योग्यताएँ
आचार्य भद्रबाहु ने निम्न गुणों से युक्त मुनि को वाचना लेने एवं देने के योग्य कहा है12
1. विनीत - सूत्रार्थदाता के प्रति वन्दना आदि विनय करने वाला। 2. विकृति-अप्रतिबद्ध - विकृतियों में आसक्त न रहने वाला। 3. उपशान्त प्राभृत - उपशान्त स्वभाव वाला।