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वाचना दान एवं ग्रहण विधि का मौलिक स्वरूप... 17
इन तीन प्रकार के व्यक्तियों को दी गयी वाचना श्रुत का विस्तार करती है, ग्रहण करने वाले का इहलोक और परलोक सुधारती है और जिनशासन की प्रभावना करती है।
बृहत्कल्पसूत्र में इन तीन मुनियों को भी वाचना लेने के पूर्ण योग्य
बतलाया है13_
1. अदुष्ट
2. अमूढ़ - गुण और दोषों का भेद ज्ञाता ।
3. अव्युद्ग्राहित – सम्यक् श्रद्धा वाला।
मूलार्थ यह है कि जो द्वेष भाव से रहित है, हित-अहित के विवेक से युक्त है और कदाग्रही नहीं है, ऐसे मुनि वाचना द्वारा प्रतिपादित तत्त्व को सरलता एवं सुगमता से ग्रहण करते हैं।
तत्त्वोपदेष्टा के प्रति द्वेष नहीं रखने वाला ।
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उत्तराध्ययनसूत्र में शिक्षाशील (वाचनाग्राही) के आठ लक्षण बतलाते हुए कहा है कि निम्न गुणों से युक्त शिष्य श्रुत अध्ययन के योग्य होता है - 1. जो हास्य नहीं करता है 2. सदा इन्द्रियों और मन पर नियन्त्रण रखता है 3. मर्म (गुप्त बात) को प्रकट नहीं करता है 4. चरित्र से हीन नहीं है 5. चारित्र के दोषों से कलुषित नहीं है 6. रसों में गृद्ध नहीं है 7. क्रोध नहीं करता है और 8. सत्यनिष्ठ है। 14
आचार्य हरिभद्र के मन्तव्यानुसार जो सामान्यतः राग-द्वेष से रहित, बुद्धिमान, धर्मार्थी, परलोक भीरू हो, विशेष रूप से अंगचूला आदि शास्त्रों का अध्ययन किया हुआ हो और अध्ययन निपुणता आदि गुणों से युक्त हो वह वाचना लेने के योग्य है। 15
आचार्य वर्धमानसूरि ने वाचना देने - लेने योग्य शिष्य का लक्षण निरूपित करते हुए कहा है कि गुरु भक्त, क्षमावान, कृतयोगी, निरोग, प्रज्ञावान, बुद्धि के आठ प्रकार के गुणों से युक्त, विनीत, शास्त्र अनुरागी, निद्राजित, अप्रमत्त, विषय त्यागी, यति आचार को जानने वाला तथा ईर्ष्यादि से रहित मन वाला मुनि सिद्धान्त अध्ययन के लिए अति उत्तम है। 16
वाचना दान के योग्य कौन ?
वाचना दान का सर्वाधिकारी कौन हो सकता है ? इस सम्बन्ध में स्पष्ट चर्चा मध्यकालीन ग्रन्थों में प्राप्त होती है। आचार्य जिनप्रभसूरि के अनुसार जो