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वाचना दान एवं ग्रहण विधि का मौलिक स्वरूप...15 वाचना ग्रहण के अयोग्य कौन ?
बृहत्कल्पसूत्र में तीन व्यक्तियों को वाचना देने-लेने के अयोग्य बतलाया गया है8___1. अविनीत, 2. विकृति-प्रतिबद्ध और 3. अनुपशान्त।
___ 1. अविनीत - जो विनय-रहित है, आचार्य या दीक्षा ज्येष्ठ साधु आदि के आने-जाने पर अभ्युत्थान, सत्कार, सम्मान आदि यथोचित विनय नहीं करता है, वह 'अविनीत' कहलाता है।
2. विकृति-प्रतिबद्ध - जो दूध, दही आदि रसों में गृद्ध है, उन रसों की प्राप्ति न होने पर सूत्रार्थ आदि के ग्रहण में मन्द उद्यमी रहता है उसे 'विकृतिप्रतिबद्ध' कहते हैं। ___3. अनुपशान्त - जो अल्प अपराध के प्रति प्रचण्ड क्रोध करता है और क्षमायाचना कर लेने पर भी उस पर बार-बार क्रोध प्रकट करता रहता है वह 'अनुपशान्त' कहा गया है।
उक्त तीनों प्रकार के मनियों को वाचना देने के अयोग्य मानने का मुख्य कारण यह है कि विनय से ही विद्या की प्राप्ति होती है, अविनयी शिष्य को विद्या पढ़ाना व्यर्थ या निष्फल होता है, प्रत्युत कभी-कभी दुष्फल भी देता है।
जो दूध-दही आदि विकृतियों में आसक्त है उसे दी गयी वाचना स्थिर नहीं रह सकती है अत: उसे भी वाचना देना व्यर्थ है।
जिसके स्वभाव में उग्रता है, ऐसे मुनि को भी वाचना देना निष्फल बताया गया है। इसलिए उक्त तीनों प्रकार के मुनि सूत्र, अर्थ या सूत्रार्थ की वाचना के अयोग्य कहे गये हैं। __ बृहत्कल्पसूत्र में निम्न तीन प्रकार के साधु भी वाचना ग्रहण के अयोग्य माने गये हैं- 1. दुष्ट – तत्त्वोपदेष्टा एवं यथार्थ तत्त्व के प्रति द्वेष रखने वाला 2. मूढ़ - गुण और अवगुण के विवेक से रहित 3. व्युग्राहित - विपरीत (अन्ध) श्रद्धा रखने वाला, कदाग्रही।
इन तीनों ही प्रकार के साधु को समझाना बहुत कठिन है। इन्हें शिक्षा देने या समझाने से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है अत: ये सूत्र वाचना के पूर्ण अयोग्य होते हैं।
निशीथसूत्र के अभिमतानुसार अप्राप्त एवं अव्यक्त मुनि वाचना लेने-देने के अयोग्य हैं।10 निशीथभाष्यकार एवं निशीथचूर्णिकार ने इस पर सम्यक्