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पदव्यवस्था एक विमर्श... 13
31. प्रवर्त्तिनी यद्याचार्याणां कथयतां न शृणोति तदा चत्वारो गुरवः, प्रवर्त्तिन्याः पार्श्वे गणावच्छेदिनी न श्रृणोति चत्वारो लघवः, अभिषेका न शृणोति मासगुरु। बृहत्कल्पभाष्य, 1044
32. गणिनी अभिषेका तस्याः सदृश: । वही, 2411 की टीका 33. थेर सरिच्छी तु होइ अभिसेगा। वही, 6111 की टीका 34. सा च प्रतिहारी द्वारमूले संस्तारयति । वही, 2333 की टीका 35. काएण उवचिया खलु
पडिहारी संजईण गीयत्था।
परिणय भुत्त कुलीणा
अभीरू वायामिय सरीरा ॥
वही, 2334
36. उवभुत्तभोगी भुत्तभोगिणो विगतकौतुकाः निर्विकारा गीतार्था ते य थेरा। निशीथसूत्र, अमरमुनि, गा. 611 की चूर्णि
37. असती पवत्तिणीए अभिसेगादी
गेण्हंति थेरियापुण दुगमादी दोण्ह वी असती।
बृहत्कल्पभाष्य, 5963.