________________
साध्वियों के आगे-पीछे चलती हुई उनकी सुरक्षा करती है।
क्षुल्लिका - जैनाचार्यों ने सद्यः प्रव्रजिता साध्वी को 'क्षुल्लिका' या 'बाला' कहा है। सामान्यतः जिसकी दीक्षा पर्याय तीन वर्ष से न्यून है और जिसे मुनि जीवन के आचार-संहिता की पूर्ण जानकारी नहीं हो पायी है, वह क्षुल्लिका या खुड्डी कहलाती है। क्षुल्लिका को मात्र सामायिक चारित्र ही होता है । यह साध्वी जीवन की सामान्य अवस्था है अतः इसके शील एवं चारित्र के संरक्षणार्थ कई विशिष्ट नियम भी बनाये गये हैं जैसे क्षुल्लिका एकाकी विचरण नहीं कर सकती, उसे प्रवर्त्तिनी आदि गीतार्थ साध्वियों की निश्रा में ही रहना चाहिए आदि । आज इसका महत्त्व दिगम्बर- संघ में अधिक रह गया है।
उपर्युक्त वर्णन से फलित होता है कि श्रमणी संघ में विक्रम की दूसरी शती के पश्चात अनेक पदों की व्यवस्था का प्रवर्त्तन हुआ। किसी समय पूर्वोल्लेखित पदों का गरिमामय स्थान था, किन्तु वर्तमान में प्रवर्त्तिनी, महत्तरा एवं गणिनी ऐसे तीन पद ही जीवन्त रह गये हैं।
अग्रिम अध्यायों में प्रचलित पदों एवं पदाधिकारियों की विस्तृत विवेचना की जाएगी।
सन्दर्भ-सूची
1. अन्तकृतदशासूत्र, 5वाँ वर्ग
2. ज्ञाताधर्मकथासूत्र, 1/9/10
पदव्यवस्था एक विमर्श... 11
3. मूलाचार, 4/184-185 की टीका 4. संस्कृत - हिन्दी कोश, पृ. 1035 5. श्राम्यत्ति तपस्यतीति श्रमणः ।
व्यवहारभाष्य 4/2 की टीका
6. मूलाचार, 9/27
7. सूत्रकृतांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 1/16/635 8. समयाए समणो होइ । उत्तराध्ययनसूत्र, 25 / 32 9. दशवैकालिकसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 10/16
10. यः शास्त्रनीत्या तपसा कर्म भिनत्ति स भिक्षुः ।
दशवैकालिक हारिभद्रीय टीका, अध्ययन 10 की टीका, पृ. 261
11. निरुक्तकोश, आचार्य तुलसी, पृ. 220