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________________ 10...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भाष्यकार ने गणावच्छेदिका को भी अभिषेका कहा है, किन्तु पद की दृष्टि से अभिषेका का स्थान गणावच्छेदिनी से भिन्न होता है। प्रवर्तिनी और गणावच्छेदिनी की अपेक्षा इसका दण्ड विधान भी न्यून होता है।31 कहीं-कहीं अभिषेका और गणिनी को समकक्ष कहा गया है।32 वस्तुत: स्थविरा, भिक्षुणी एवं क्षुल्लिका से अभिषेका का स्थान ऊँचा होता है तथा प्रवर्तिनी या गणिनी की वृद्धावस्था में उनके उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने हेतु इसे भावी गणिनी के रूप में स्वीकार किया जाता है। किसी अपेक्षा से श्रमण संघ में जो स्थान स्थविर का है वही श्रमणी-संघ में अभिषेका का माना गया है।33 प्रतिहारी - द्वारपाल के समान श्रमणी संघ की सुरक्षा करने वाली साध्वी प्रतिहारी कही गयी है। प्रतिहारी साध्वी को प्रतिश्रयपाली, द्वारपाली अथवा पाली शब्द से भी सम्बोधित किया है। यह श्रमणियों के लिए Guard के रूप में कार्यरत रहती है। विहार यात्रा आदि जहाँ कहीं भी साध्वी वर्ग की सुरक्षा का प्रश्न होता है वहाँ उसे द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया जाता है।34 । बृहत्कल्पभाष्य के मतानुसार यह साध्वियों में प्रतिभावान, शरीर से बलिष्ठ, निर्भीक, उच्च कुलोत्पन्न, वय एवं बुद्धि से परिपक्व, गीतार्थ एवं भुक्तभोगिनी होती है।35. यदि किसी साध्वी को आतापना आदि की इच्छा हो, तब भी सुरक्षा के रूप में प्रतिहारी का साथ होना आवश्यक है। इसे रात्निक या रत्नाधिक श्रमणी भी कहा जाता है। स्थविरा - स्थविरा शब्द वृद्धत्व का सूचक है। यहाँ संयम पर्याय, आयु एवं ज्ञान तीनों की अपेक्षा वृद्धत्व समझना चाहिए। आगमिक व्याख्याकारों ने भुक्तभोगी एवं कुतूहल रहित निर्विकारी गीतार्थ को भी स्थविर कहा है।36 श्रमणी संघ में वन्दन-व्यवहार आदि की दृष्टि से स्थविरा का तीसरा स्थान मान्य है। यह भिक्षुणी और क्षुल्लिका से उच्च स्थानीय होती है। स्थविर के समान यह स्वयं भी संयमनिष्ठ होती है और धर्म से खिन्न होने वाली साध्वियों को भी संयम में दृढ़ करती है। सामान्यतया संघीय समस्याओं को सुलझाने एवं प्रवर्तिनी आदि के अभाव में वस्त्रादि की याचना करने में स्थविरा का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।37 साथ ही असुरक्षित या शून्य प्रदेशों में विहार करते समय बाल या तरूणी
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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