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पदव्यवस्था एक विमर्श...9 एवं ध्यान में निमग्न, ज्ञान आदि का संग्रह करने में कुशल, मोक्षाभिलाषिणी, शिक्षा दान में अप्रमत्त और जिनशासन रक्षणार्थ उग्र रूप धारण करने वाली होती है।27
गणावच्छेदिका - आचारांग, स्थानांग आदि आगम साहित्य में गणावच्छेदक शब्द का प्रयोग स्पष्ट रूप से देखा जाता है, किन्तु वह श्रमण के लिए व्यवहृत है। श्रमणियों के लिए इस पद का प्रयोग छेद सूत्रों एवं उनके व्याख्या साहित्य में ही उपलब्ध होता है। गणावच्छेदिका की वास्तविक स्थिति के बारे में इतना ही ज्ञात होता है कि यह प्रवर्त्तिनी की मुख्य सहयोगिनी होती है। इसका कार्य क्षेत्र गणावच्छेदक की भाँति विस्तृत होता है। प्रवर्तिनी की अनुमति से निश्रावर्ती साध्वियों की सेवा, शिक्षा आदि का ध्यान रखना, उनकी सम्यक् देख-रेख करना, उनके विहार आदि की समुचित व्यवस्था करना एवं वर्षावास योग्य क्षेत्र की गवेषणा करना आदि कार्य करती हुई प्रवर्तिनी को बहुतसी चिन्ताओं से मुक्त रखती है।
अनेक स्थलों पर ‘पवत्तिणी वा गणावच्छेइणी वा' शब्द का प्रयोग यह ध्वनित करता है कि प्रवर्त्तिनी के समान गणावच्छेदिका के लिए भी आचार प्रकल्प आदि का सम्यक् ज्ञान होना आवश्यक है, क्योंकि गणावच्छेदिका पदस्थ साध्वी कुछ नियम प्रवर्तिनी के समान ही बताये गये हैं। जैसे - प्रवर्तिनी को हेमन्त व ग्रीष्म ऋतु में दो तथा वर्षाऋत् में तीन साध्वियों के साथ रहने का विधान है वहीं गणावच्छेदिनी के लिए इन्हीं ऋतुओं में क्रमश: तीन और चार साध्वियों के साथ यात्रा आदि करने का नियम है।28 इस तरह गणावच्छेदिनी प्रवर्तिनी के समान होने पर भी कार्य क्षेत्र आदि की अपेक्षा भिन्न होती है। उसका कार्य क्षेत्र विस्तृत होता है, अत: उसके साथ रहने वाली साध्वियों की संख्या प्रवर्त्तिनी से अधिक रखी गयी है।
भाष्यकार के मतानुसार श्रमणी संघ में गणावच्छेदिनी का स्थान उपाध्याय के सदृश होता है।29
अभिषेका - सामान्यत: अभिषेक शब्द पदारोहण या प्रतिष्ठापन अर्थ में प्रयुक्त होता है। बृहत्कल्पभाष्य में अभिसेगपत्ता अर्थात “अभिषेक प्राप्ता प्रवर्तिनी पद योग्या' कहकर उसे प्रवर्तिनी पद के योग्य माना है।30 इससे प्रतीत होता है कि प्रवर्तिनी के देहावसान के पश्चात जिस योग्य गीतार्था को प्रवर्तिनी पद पर अभिषिक्त किया जाता है, वह अभिषेका कहलाती है।