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________________ 8...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में हैं। इस आम्नायानुसार क्षुल्लिका एक पात्रधारी अथवा पाँच पात्रधारी होती है, थाली आदि में भोजन करती है, केशलोच का नियम नहीं है, धातु का कमण्डलु रखती है, दिन में एक बार आहार करती है और श्वेत शाटिका के सिवाय एक चादर भी रखती है।22 प्रवर्तिनी - साध्वी समुदाय को संयम आदि शुभ प्रवृत्तियों में संयोजित करने वाली श्रमणी प्रवर्तिनी कहलाती है। यह सकल साध्वियों की नायिका होती है। प्रवर्तिनी का मुख्य कर्तव्य निश्रावर्ती साध्वियों की सुरक्षा करना है। वह वाचना आदि उत्तरदायित्वों का भी वहन करती है। महत्तरा - श्रमणी-संघ की प्रमुखा साध्वी ‘महत्तरा' कहलाती है। प्रवर्तिनी की अपेक्षा यह पद उच्च होता है। सामान्य साधु-साध्वी की तुलना में भी इसका स्तर ऊँचा होता है किन्तु आचार्य से निम्न कोटि का होता है इसलिए महत्तमा न कहकर महत्तरा कहा गया है। आज भी यह पद व्यवस्था जीवित है। गणिनी - गणिनी का शाब्दिक अर्थ है- साध्वी समुदाय का संचालन करने वाली। यह प्रवर्तिनी से निम्न होती है, किन्तु कभी-कभी प्रवर्तिनी के समकक्ष भी इसे स्थान दिया जाता है।23 यद्यपि यह पद प्रवर्तिनी से किन अर्थों में भिन्न है, यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। तदुपरान्त जैसे श्रमण-संघ में ग्यारह अंगों का ज्ञाता गणि कहलाता है24 उसी प्रकार श्रमणी संघ में बहुश्रुता साध्वी गणिनी कहलाती होगी। संस्कृत व्याकरण में 'गण' धात् गणनार्थक है। इससे ध्वनित होता है कि श्रेष्ठ, गणनीया, माननीया साध्वी गणिनी कहलाती है। मलाचार में प्रधान साध्वी या महत्तरा को गणिनी कहा गया है।25 वस्तुतः संघ में गणिनी की क्या स्थिति थी एवं उसके मुख्य अधिकार क्या थे? इसकी प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं हो पायी है, किन्तु भाष्यकार के मत से इतना स्पष्ट हो जाता है कि अपराध होने पर गणिनी एवं अभिषेका को निम्न तथा प्रवर्तिनी को कठोर दण्ड दिया जाता है। उदाहरणार्थ- भिक्षणी को जलाशय के किनारे ठहरना एवं वहाँ स्वाध्याय आदि करने का निषेध है। इस नियम का अतिक्रमण करने पर गणिनी एवं अभिषेका को छेद तथा प्रवर्तिनी को मूल प्रायश्चित्त देने का विधान है।26 इस व्यवस्था के आधार पर निर्विवादत: कहा जा सकता है कि गणिनी प्रवर्तिनी से निम्न तथा अभिषेका के समकक्ष होती है। गच्छाचार के अनुसार गणिनी विदुषी, प्रशासनिक कार्यों में दक्ष, स्वाध्याय
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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