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________________ पदव्यवस्था एक विमर्श... 5 श्रमणियों की संख्या अधिक थी। जैसे प्रभु आदिनाथ के चौरासी हजार श्रमण थे, वहीं तीन लाख साध्वियाँ थी। प्रभु महावीर के चौदह हजार श्रमण थे, जबकि साध्वियाँ छत्तीस हजार यानी ढाई गुना से भी अधिक थी, फिर भी किसी पद व्यवस्था का सूत्रपात हुआ हो ऐसा ज्ञात नहीं होता है। इसके पश्चात आगम साहित्य के काल तक कहीं-कहीं 'प्रवर्त्तिनी' पद का नामांकन मिलता है, किन्तु इस सन्दर्भ में कुछ कहा गया हो, ऐसा पढ़ने में नहीं आया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार आगमिक व्याख्या साहित्य के पूर्वकाल तक साध्वियों को इन नामों से ही सम्बोधित किया जाता रहा है, जैसे श्रमणी, शमणी, समणी, निर्ग्रन्थी, भिक्षुणी, आर्य्या, वृतिनी, साध्वी आदि तथा परवर्तीकाल में क्षुल्लिका, महासती, स्वामी, माताजी आदि नाम भी प्रसिद्ध हुए हैं। अन्तकृतदशा' में 'सिस्सिणी' एवं ज्ञाताधर्मकथा' में 'गुरू' शब्द उपलब्ध होते हैं, जो सामान्यतया दीक्षा के लिए इच्छुक एवं दीक्षा दाता के सूचक हैं। दूसरे, उपर्युक्त शब्द पदव्यवस्था के वाचक हो, ऐसी सूचना भी प्राप्त नहीं होती है, क्योंकि ये शब्द सामूहिक रूप से सभी श्रमणियों के लिए प्रयुक्त हुए हैं। इससे प्रतीत होता है कि तीर्थङ्करों की साक्षात उपस्थिति में उनकी आत्मानुशासित प्रणाली के कारण किसी पद व्यवस्था की अनिवार्यता महसूस नहीं हुई होगी अथवा आन्तरिक कुछ व्यवस्थाएं निर्मित हुई होंगी तो भी बाह्य स्तर पर उनका प्रगटीकरण करना आवश्यक प्रतीत नहीं हुआ होगा। हमें साध्वी-सम्बन्धी पदों के उल्लेख मूलतः छेद ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। बृहत्कल्पभाष्य में उनके पाँच पदों के नाम इस प्रकार हैं- प्रवर्त्तिनी, अभिषेका, भिक्षुणी, स्थविरा और क्षुल्लिका । इसके अतिरिक्त महत्तरा, गणिनी, गंणावच्छेदिनी, प्रतिहारी आदि पदों का भी उल्लेख मिलता है। इन पदों का मूल उद्देश्य धर्म प्रभावना, संयम मार्ग की सुदृढ़ परिपालना एवं अनुशासनबद्धता ही रहा है। दिगम्बर संघ में थेरी और गणिनी ये दो पद ही प्राप्त होते हैं । | मूलाचार में दिगम्बर भिक्षुणियों के लिए संयती तथा तपस्विनी शब्द का भी प्रयोग किया गया है, परन्तु ये नाम पदव्यवस्था के द्योतक नहीं है। 3 बौद्ध धर्म में सामान्य रूप से भिक्षुणी वर्ग के लिए सामणेरी ( श्रामणेरी),
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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