SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 6 ... पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भिक्खुनी (भिक्षुणी) और सिक्खमाना (शैक्षमाणा ) एवं पदस्थ भिक्षुणी के लिए थेरी और पवत्तिनी (प्रवर्त्तिनी) शब्द का प्रयोग हुआ है। श्रमणी आदि शब्दों की संक्षिप्त परिभाषाएँ इस प्रकार है श्रमणी श्रमणी शब्द 'श्रमु तपसि खेदे च' अर्थात तप और खेद अर्थ में प्रयुक्त श्रम् धातु एवं स्त्रीलिंग में 'णी' प्रत्यय से निष्पन्न है | 4 इस नियम के अनुसार जो श्रमशील और तपस्या में लीन है वह श्रमणी कहलाती है। व्यवहारभाष्य की टीकानुसार जो शारीरिक कृशता रूप बाह्य और स्वाध्यायध्यान आदि आभ्यन्तर तप में लीन है, वह श्रमणी है। 5 शमनी - श्रमणी का ही एक संस्कृत रूप 'शमनी' है। मागधी भाषा में 'श्रमणी' के स्थान पर 'शमनी' प्रयोग मिलता है। शमनी शब्द 'शमु उपशमे' धातु से निर्मित है। इसका अर्थ है, जो अपनी वृत्तियों को शान्त रखती है अथवा समिति, गुप्ति, त्याग और चारित्र द्वारा पापों का शमन करती है, वह शमनी कहलाती है। - - समणी यह 'श्रमणी' का प्राकृत रूप है। इसके विभिन्न अर्थ हैं- जो समस्त प्राणियों को आत्मतुल्य समझकर किसी भी जीव का हनन नहीं करती, वह समणी है।7 उत्तराध्ययनसूत्र में भी यही कहा गया है - समता से श्रमण होता है | अतः हर स्थिति में समभाव धारण करने वाली समणी कहलाती है। निर्मन्थी निः + ग्रन्थ इन दो पदों के संयोग से निर्ग्रन्थ शब्द बना है । 'ग्रन्थ' का अर्थ है - गांठ, 'नि' निषेधार्थक उपसर्ग है । इस तरह निर्ग्रन्थ का अर्थ है - गांठ रहित। जो राग-द्वेष रूपी आन्तरिक एवं धन-धान्यादि परिग्रह रूप बाह्य ग्रन्थि को जीतने का प्रयास करता हो अथवा रहित हो, वह निर्ग्रन्थ कहलाता है। स्त्री लिंग में निर्ग्रन्थी रूप बनता है । - भिक्षुणी - भिक्षु संज्ञार्थक शब्द में 'णी' प्रत्यय जुड़कर 'भिक्षुणी' शब्द निष्पन्न हुआ है। आगमकारों के अनुसार जो मुनि वस्त्रादि उपधि में अनासक्त है, अगृद्ध है, अज्ञात कुलों में आहार की एषणा करता है, क्रय-विक्रय एवं संग्रहवृत्ति से रहित है, वह भिक्षु है। टीकाकारों के अभिमत से जो शास्त्ररीति एवं मर्यादानुसार तप द्वारा कर्मों का भेदन करता है, वह भिक्षु है। 10 कहीं-कहीं पर जो अष्ट कर्मों का भेदन करता है, उसे भिक्षु कहा गया है । 11 संस्कृत-हिन्दी कोश में ‘श्रमणी' को 'भिक्षुकी' कहा है। 12 हमें 'भिक्षुणी '
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy