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244...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
समाज ही धर्म से जुड़ता है। सामान्य व्यवहार में भी कहा जाता है कि एक शिक्षित महिला पूरे परिवार को सही शिक्षा दे सकती है। प्रवर्त्तिनी समस्त साध्वी मण्डल की अधिनायिका के रूप में प्रत्येक क्षेत्र में उनका नेतृत्व करती हैं और उन्हें श्रेष्ठ कार्यों हेतु प्रोत्साहित करती हैं ।
प्रवर्त्तिनी पद की गरिमा एवं महत्त्व का आलेखन यदि प्रबन्धन की दृष्टि से करें तो समाज प्रबन्धन, समुदाय प्रबन्धन, महिला प्रबन्धन आदि कई क्षेत्रों में इसकी उपादेयता परिलक्षित होती है। समुदाय प्रबन्धन की दृष्टि से प्रवर्त्तिनी के समान गीतार्था, उन्नायिका एवं प्रणेता मिलने से श्रमणी संघ को सही मार्गदर्शन मिलता है । मतिभ्रम या गलतफहमी के कारण यदि पारस्परिक कलह आदि की परिस्थिति बन भी जाए तो वह सही निर्णय लेने में समर्थ होने से तथा दण्ड आदि देने में सक्षम होने से उद्दण्डता, अपराध आदि पर नियन्त्रण करती है । प्रबन्धन के क्षेत्र में प्रवर्त्तिनी पद का सहयोग हो सकता है । जिस प्रकार अध्यात्म के क्षेत्र में नारी को शासन प्रणाली में सहायक माना गया है वैसे ही राजनीति एवं सामाजिक कार्यों में नारी को शासन प्रणाली का अंग बनाकर राष्ट्र उत्थान एवं समाज प्रबन्धन में विशेष योगदान प्राप्त कर सकते हैं । प्रवर्त्तिनी द्वारा श्रमणी गण का संचालन होने से महिला शक्ति की असीमता का ज्ञान होता है तथा कई सृजनात्मक कार्यों में महिला शक्ति के उपयोग की प्रेरणा भी मिलती है।
वर्तमान समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में यदि प्रवर्त्तिनी पद के महत्त्व पर प्रकाश डाला जाए तो यह नारियों पर बढ़ते अत्याचार, उनकी शक्ति को दबाने के जो प्रयत्न किये जाते हैं उन पर एक कड़ा प्रहार हो सकता है । यद्यपि वर्तमान में नारी मात्र गृहशोभा बनकर नहीं रह गयी हैं, पर आज नारी की पूजनीयता एवं आदर-सम्मान कम होता जा रहा है तथा समाज अधिकार देने के नाम पर उनका और अधिक शोषण कर उन्हें अपने स्तर से गिर रहा है, ऐसी स्थिति में प्रवर्त्ति के समान उच्च पदों पर स्वार्थ त्यागकर कार्य हो तो नारी शोषण को रोका जा सकता है। नारी प्राकृतिक रूप से सामञ्जस्य स्थापित करने की कला लेकर आती है, अतः सामञ्जस्य एवं सौहार्द्र स्थापित करने में सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस पद के माध्यम से संस्कारों को दृढ़ करने में भी विशेष सहायता प्राप्त हो सकती है।