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228...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में महत्तरापदग्राही के लिए आवश्यक योग्यताएँ
महत्तरा पद योग्य साध्वी किन गुणों से युक्त होनी चाहिए? इस विषयक आधार भूत चर्चा विक्रम की 14वीं शती तक के उपलब्ध ग्रन्थों में स्वतन्त्र रूप से प्राप्त नहीं होती है। यदि महत्तरापद को प्रवर्त्तिनी के तुल्य स्वीकारा जाये तो मानना होगा कि प्रवर्तिनी के लिए आवश्यक सभी गुण महत्तरा साध्वी में होने चाहिए।
इस सम्बन्ध में सामान्य चर्चा आचारदिनकर में प्राप्त होती है। इसमें महत्तरापद के योग्य साध्वी के लक्षण बताते हुए कहा गया है कि जो सिद्धान्तों में पारगामी हो, शान्त स्वभावी हो, उत्तम कुल में उत्पन्न हो, सम्यक् रूप से योगोद्वहन की हुई हो, स्त्रियोचित चौसठ कलाओं की ज्ञाता हो, समस्त विद्याओं में निपुण हो, प्रमाण, लक्षण आदि शास्त्रों की ज्ञात्री हो, मृदुभाषिणी हो, उदार हृदयी हो, शुद्ध शीलवाली हो, पाँच इन्द्रियों के निग्रह में रत हो, धर्मोपदेश में निपुण हो, लब्धि तत्त्वज्ञा हो, दयार्द्र हृदयी हो, प्रसन्नमना हो, बुद्धिशालिनी हो, गच्छानुरागिणी हो, नैतिक मर्यादाओं के पालन में तत्पर हो, गुणों से भूषित हो, विहारादि करने में समर्थ हो और ज्ञान आदि पंचाचार का पालन करती हो- इन गुणों से युक्त साध्वी महत्तरापद के योग्य होती है।
इससे इतना और स्पष्ट हो जाता है कि जिस प्रकार मुनि संघ में आचार्य, उपाध्याय आदि पदों पर स्थापित होने के लिए योग्यताओं के साथ-साथ निश्चित दीक्षापर्याय का होना भी आवश्यक माना गया है यह नियम महत्तरापद पर आरूढ़ होने वाली साध्वी के लिए अनिवार्य नहीं है। किन्तु इतना अवश्य है कि वह संयम स्थविर, ज्ञान स्थविर या वय स्थविर अवश्य हो।
__ आचार्य वर्धमानसूरि ने महत्तरापद के अयोग्य साध्वी का लक्षण भी बतलाया है। तदनुसार कुरूपा, खण्डित अंग वाली, हीन कुल में उत्पन्न, मूढ़, दुष्ट, दुराचारिणी, रोग ग्रसित, कठोर भाषिणी, साध्वाचार से अनभिज्ञ, अशुभ समय में उत्पन्न, कुलक्षणा, आचारहीन- इस प्रकार की साध्वी महत्तरा पद के अयोग्य होती है।
यहाँ 'अशुभ समय में उत्पन्न' जो कहा गया है इसका आशय यह है कि महत्तरा पद के योग्य साध्वी की जन्मकुण्डली देखी जाती है और उसके आधार पर शुभाशुभ समय का निर्णय किया जाता है। यदि वह बाह्य लक्षणों से सुयोग्य