SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महत्तरापद स्थापना विधि का तात्त्विक स्वरूप...227 का अनुभव महत्त्व रखता है। इसके माध्यम से बड़ों के प्रति सम्मान आदि के भावों में वृद्धि होती है तथा समाज में वैसे ही संस्कारों का निर्माण होता है। इससे नारी की महिमा एवं उसकी पूज्यता का सन्देश समस्त समाज को मिलता है। मैनेजमेण्ट या प्रबन्धन के विषय में महत्तरा पद की सार्थकता पर विचार किया जाए तो यह व्यवस्था प्रबन्धन, समुदाय प्रबन्धन, नारी प्रबन्धन, परिवार प्रबन्धन आदि में सहायक हो सकता है। दीर्घ वय एवं ज्ञान स्थविर साध्वी को महत्तरा पद पर विभूषित करने से परिवार, समाज एवं समुदाय में वरिष्ठ एवं अनुभवी लोगों के प्रति आदर भाव उत्पन्न होते हैं जिससे एक शान्त, मनोरम एवं सामञ्जस्ययुक्त वातावरण का निर्माण होता है जो परिवार एवं समाज के प्रबन्धन में सहायक होता है। इसी प्रकार समाज-व्यवस्था में वरिष्ठ वर्ग को किस प्रकार जोड़कर रखा जाए जिससे उन्हें मानसिक शान्ति प्राप्त हो तथा उनके अनुभव एवं ज्ञान का उपयोग समाज के उत्कर्ष में उपयोगी बन सके आदि का सन्देश मिलता है। नारी को शासन-व्यवस्था में स्थान मिलने से नारी जगत से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान प्राप्त हो सकता है। इसी के साथ नारी को सम्माननीय स्थान की प्राप्ति होती है। इस प्रकार नारी प्रबन्धन में भी इसका विशेष महत्त्व है। वर्तमान जगत की समस्याओं के सन्दर्भ में महत्तरा पद की विशेषता को आंका जाये तो 1. वरिष्ठ वर्ग के प्रति बढ़ता अनादर, उपेक्षा भाव, आपसी दूरियों (Generation gap) को कम किया जा सकता है। 2. समाज में बढ़ रहे वृद्धाश्रम एवं रिटायर्ड वर्ग में बढ़ते मानसिक तनाव, (Depression) आदि को न्यून किया जा सकता है। 3. अनुभव की कमी के कारण आ रही व्यावसायिक, राजनैतिक एवं पारिवारिक समस्याओं का हल अनुभवी वरिष्ठ वर्ग की सहायता से प्राप्त किया जा सकता है। आज छोटे बालकों को बेबी सीटर्स (Baby seaters) आदि के पास रखने से जो संस्कारों की हानि हो रही है उससे बचा जा सकता है क्योंकि घर में बड़े जिस जिम्मेदारी एवं अपनेपन से बच्चों को सम्भालते हैं, वह काम वाली आया या नौकरानी नहीं कर सकती।
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy