________________
226...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में हैं अथवा जो साध्वी समुदाय में वयादि की अपेक्षा प्रधान हो, उसे महत्तरा कहते हैं। प्रसंगानुसार महत्तरा के निम्न अर्थ भी सम्भावित हैं -
• श्रेष्ठतर या विशिष्टतर आचार को धारण करने वाली साध्वी। • संघ विशेष के महान दायित्व को धारण करने वाली साध्वी। • विशिष्ट अधिकारों से अधिकृत साध्वी। • कर्त्तव्य बुद्धि से श्रमणी-संघ का संचालन करने वाली साध्वी। • आचार मर्यादा का उत्कर्ष रूप से सम्पादन करने वाली साध्वी।
• संयम, वय या ज्ञान से स्थविर (प्रौढ़ा) साध्वी महत्तरा कहलाती है। आधुनिक सन्दर्भ में महत्तरा पद की उपयोगिता
श्रमण एवं श्रमणी संघ की व्यवस्था हेतु जैन शास्त्रों में कुछ पदों का विधान मिलता है। उन्हीं में श्रमणी संघ के संचालन एवं मार्गदर्शन हेतु महत्तरा पद का विधान है।
महत्तरा पद की उपादेयता यदि मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में देखी जाए तो महत्तरापद वरिष्ठ या सम्माननीय साध्वी के लिए प्रयुक्त होता है। वह वय एवं दीक्षा पर्याय से अनुभवी होती हैं अत: अपने अनुभव के माध्यम से श्रमणी संघ को उपयुक्त एवं योग्य मार्गदर्शन प्रदान कर सकती हैं। वह अन्य श्रमणश्रमणियों की मानसिकता भापने में समर्थ होने से उनके मन में उत्पन्न उद्वेगशंका आदि का समाधान करने में भी सक्षम होती है। वह वात्सल्य एवं स्नेह प्रदान कर श्रमणी संघ को संरक्षित होने एवं सुरक्षित होने का एहसास करवाती है तथा द्रव्य एवं भाव दोनों चारित्र में अभिवृद्धि कर सभी को मानसिक शान्ति प्रदान करती है।
सामाजिक सन्दर्भ में महत्तरा पद पर चिन्तन किया जाए तो यह पद सामाजिक उत्थान की अपेक्षा से प्रदान किया जाता हैं। चतुर्विध संघ के सम्यक् दिग्दर्शन एवं संचालन के लिए इस पद का विधान है। परिवार एवं समाज में जिस प्रकार किसी भी श्रेष्ठ या उत्तम कार्य के लिए बड़ों के मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद को महत्त्वपूर्ण माना गया है वैसे ही महत्तरा समस्त समाज को लोकोत्तर मार्गदर्शन देती हैं। अनुभवी (Experienced) लोगों का प्रत्येक क्षेत्र में महत्त्व होता है, जब किसी नौकरी के लिए आवेदन किया जाता है तो उसमें आवेदक का अनुभव भी प्रमुखता रखता है इसी प्रकार संघ संचालन में महत्तरा