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________________ आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप...207 10. वज्रमुद्रा 11. मुद्गरमुद्रा 12. योनिमुद्रा 13. स्नानमुद्रा 14. छत्रमुद्रा 15. समाधानमुद्रा 16. कल्पवृक्षमुद्रा। सामाचारीप्रकरण'57, विधिमार्गप्रपा,158 सुबोधासामाचारी159 आदि में वासचूर्ण, आसन आदि को मन्त्रित करने का निर्देशन तो है, किन्तु उन्हें किन मुद्राओं आदि से अभिमन्त्रित करना चाहिए, इसका नामोल्लेख नहीं है। __मन्त्रदान संबंधी - सामाचारीसंग्रह, सामाचारीप्रकरण, सुबोधासामाचारी, विधिमार्गप्रपा आदि में इष्ट लग्न के समय चन्दन से अर्चित शिष्य के दाहिने कर्ण में गुरु परम्परागत मन्त्र पदों को सुनाने का उल्लेख है, किन्तु आचारदिनकर के अनुसार गन्ध, अक्षत एवं पुष्पों से अर्चित दाएं कान में ऋद्धि-सिद्धिदायक, शाश्वत, चिन्तामणि एवं कल्पवृक्ष से भी अधिक प्रभावशाली सूरिमन्त्र सुनाना चाहिए।160 यहाँ दाहिने कर्ण को पुष्पादि से अर्चित करने का जो उल्लेख है वह हिन्दू परम्परागत प्रतीत होता है। विधिमार्गप्रपा में यह बात विशेष रूप से कही गयी है कि भगवान महावीरस्वामी के समय यह सूरिमन्त्र इक्कीस सौ अक्षर परिमाण वाला था, गौतमस्वामी ने इसे बत्तीस श्लोक में गुम्फित किया तथा अन्तिम आचार्य दुप्पसहसूरि तक साढ़े आठ श्लोक परिमाण रह जायेगा। इसमें परम्परागत आम्नायानुसार सूरिमन्त्र की साधना विधिं भी दिखलायी गयी है।161 ___अक्षदान संबंधी- सामाचारीसंग्रह, सामाचारीप्रकरण आदि में सूरिमन्त्र सुनाने के पश्चात नूतन आचार्य को बढ़ती हुई तीन अक्ष मुट्ठियाँ देने का निर्देश है जबकि आचारदिनकर में गन्ध एवं अक्षत से युक्त अक्षपोट्टलिका देने का सूचन किया गया है। देववन्दन संबंधी - सामाचारीसंग्रह आदि में देववन्दन से सम्बन्धित भिन्न-भिन्न मत हैं। जैसे- सामाचारीसंग्रह 62 में उल्लिखित बृहद् देववन्दन-विधि करने का निर्देश है। सामाचारीप्रकरण163 में नौ स्तुतियों द्वारा, तिलकाचार्यसामाचारी164 में संक्षिप्त देववन्दन, सुबोधासामाचारी165 में चार कायोत्सर्ग द्वारा, विधिमार्गप्रपा 66 में सोलह स्तुतियों द्वारा एवं आचारदिनकर167 में आठ स्तुतियों द्वारा देववन्दन करने का प्रतिपादन है। पदानुज्ञा संबंधी- निर्वाणकलिका में आचार्याभिषेक-विधि इस अध्याय में वर्णित विधि से बहुत कुछ अलग हटकर कही गयी है।168 इसमें पदानुज्ञा के
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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