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________________ 178...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में संघव्यवस्था में कुशल होना भी संग्रहपरिज्ञा सम्पदा है। इसके चार प्रकार निम्न हैं-81 (i) बहुजन प्रायोग्य क्षेत्र - जो समूचे मुनि संघ के लिए वर्षावास में रुकने योग्य क्षेत्र की प्रतिलेखना करने वाले हो अर्थात बाल, ग्लान, तपस्वी, प्राघूर्णक (अतिथि) आदि सभी के लिए उपयुक्त क्षेत्र का परीक्षण करने वाले हो। भाष्यकार के मत से विस्तीर्ण क्षेत्र की प्रेक्षा न करने से योगवाही साधुओं का संग्रह नहीं हो सकता और वे अन्य गच्छों में भी जा सकते हैं। (ii) पीठ-फलक सम्प्राप्ति - जो अनेक मुनिजनों के लिए प्रातिहारिक (लौटाने योग्य) पीठफलक, शय्या-संस्तारक आदि की उचित व्यवस्था करने वाले हो अर्थात क्षेत्रीय जनता में इस प्रकार की भाव वृद्धि करने वाले हो कि बाल, तपस्वी, अध्ययनशील आदि साधु-साध्वियों का निर्वाह एवं उनकी सेवाशुश्रुषा सहज सम्पन्न हो सके। (iii) कालसमानयन - जो उचित समय पर आवश्यक आचारों जैसेस्वाध्याय, प्रतिक्रमण, प्रतिलेखन, अध्ययन-अध्यापन का सम्यक पालन करने और कराने वाले हो। ____ (iv) गुरु पूजा - गुरुजनों का यथायोग्य विनय आदि करने वाले हो अर्थात प्रव्रज्यादाता, वाचनादाता, गुरु या दीक्षापर्याय में ज्येष्ठ मुनियों की विशिष्ट विनय-भक्ति करने वाले हो। इस प्रकार आठों ही सम्पदाएँ परस्पर एक-दूसरे की पूरक और महत्त्वपूर्ण हैं। जैसे कुशल नाविक के बिना सामुद्रिक यात्रियों के पूर्ण सुरक्षा की आशा रखना अनुचित है वैसे ही आठ सम्पदाओं से गुण सम्पन्न आचार्य के अभाव में संयमी आत्माओं की साधना में किसी भी प्रकार की विराधना न हो, यह सम्भव नहीं है। आचार्य सम्पूर्ण संघ की धर्म-नौका के नाविक होते हैं अत: संघहित के लिए यह ज्ञातव्य है कि आठ सम्पदा रूपी सर्वोच्च गुणों से सम्पन्न गीतार्थ मुनि को ही आचार्य पद पर स्थापित करें।82 ___ व्यवहारसूत्र के उल्लेखानुसार इस पद पर अधिष्ठित होने वाला श्रमण आचारकुशल, संयमकुशल, प्रवचनकुशल, प्रज्ञप्तिकुशल, संग्रहकुशल और उपग्रहकुशल होना चाहिए। साथ ही अक्षतचारित्री, अभिन्नचारित्री, अशबलचारित्री और असंक्लिष्ट आचार सम्पन्न भी होना चाहिए। बहुश्रुत एवं
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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