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________________ आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप...179 बहुआगमज्ञ, कम से कम दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प एवं व्यवहारसूत्र को अवधारण किया हुआ होना चाहिए। इसके अनुसार वह न्यूनतम पांच वर्ष की दीक्षापर्याय से भी युक्त होना चाहिए। इसके सिवाय मध्यम या उत्कृष्ट किसी भी दीक्षापर्याय वाले व्यक्ति को एवं श्रुताभ्यासी को यह पद दिया जा सकता है।83 पुनश्च ज्ञातव्य है कि आचार्य पर गच्छ की सम्पूर्ण व्यवस्थाओं का उत्तरदायित्व रहता है। वे आगमों की वाचना भी देते हैं अत: अनुभव क्षमता की दृष्टि से न्यूनतम पांच वर्ष की दीक्षा पर्याय बतलायी गयी है। बृहत्कल्पभाष्य के मन्तव्यानुसार जिसने निशीथ का सूत्रत: पूर्ण अध्ययन कर लिया हो, गुरु के पास उसके अर्थ को ग्रहण किया हुआ हो, परावर्तना और अनुप्रेक्षा द्वारा सूत्रार्थ का अच्छा अभ्यास कर लिया हो, जो विधि-निषेध के विधान में कुशल हो, पांच महाव्रतों के प्रति जागरूक हो- इस प्रकार पठित, श्रुत, गुणित, धारित और व्रतों में अप्रमत्त मुनि आचार्य पद के योग्य होता है।84 प्राचीन सामाचारी के मतानुसार आचार्य पदारूढ़ होने वाला शिष्य आठ वर्ष की उम्र में दीक्षित हआ, बारह वर्ष तक सूत्रों का एवं बारह वर्ष तक सूत्रार्थों का एवं बारह वर्ष तक सूत्र और अर्थ दोनों का अध्ययन किया हुआ होना चाहिए। इस तरह चवालीस वर्ष पूर्णकर पैंतालीसवें वर्ष को प्राप्त हो जाये, तब आचार्य पद प्रदान करना चाहिए क्योंकि इस उम्र में ही अनुयोग की अनुज्ञा के लिए योग्यता प्रकट होती है। इसके साथ ही आर्यदेश में उत्पन्न हुआ, छत्तीस गुणों से अलंकृत, दृढ़ चारित्री, उपयोगवान, संघमान्य, मोक्षाभिलाषी, कालसंघयण आदि वर्तमानकालीन दोषों के वशाधीन एकाध गुण से विहीन होने पर भी गीतार्थ, वैराग्ययुक्त एवं शिष्यादि को सारणा आदि कराने में कुशल मुनि आचार्य पद के योग्य है।85 ___पंचवस्तुक के अनुसार जो मुनि पांच महाव्रतों से युक्त हो, वाचना देने के योग्य काल को प्राप्त कर चुका हो तथा जिसने सकल सूत्रार्थों का अभ्यास कर लिया हो वही आचार्य पद के योग्य होता है।86 विधिमार्गप्रपा के अभिमतानुसार जो आचार, श्रुत, शरीर, वचन, वाचना, मति एवं प्रयोग मति एवं संग्रहपरिज्ञा इन आठ प्रकार की गणिसम्पदा से युक्त हो, देश- कुल- जाति- रूप आदि गुणगणों से अलंकृत हो, बारह वर्ष तक आगमसूत्रों एवं समस्त दार्शनिक सिद्धान्तों आदि का अध्ययन किया हुआ हो,
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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