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________________ आचार्य पदस्थापना विधि का शास्त्रीय स्वरूप...147 स्वच्छन्द शिष्यों का अभिप्रायविज्ञ, पृथ्वी सम सहिष्णु, कमलपत्र की भाँति निर्लेप, वायु की तरह अप्रतिबद्ध, पर्वत सम निष्कम्प, सागर सम अक्षोभी, कछुआ की तरह गुप्तेन्द्रिय, स्वर्ण की भांति तेजमय, चन्द्र सम शीतल, गगन की तरह अपरिमित ज्ञानी, अतीन्द्रियार्थदर्शी, सूत्रार्थ में अति निपुण, मोक्ष गवेषक, तीन दण्ड- तीन गारव- तीन शल्य से रहित, पंच समिति से समित, तीन गुप्ति से युक्त, निदान ज्ञाता, विकल्प विधिज्ञ, षट्स्थान रूप विशुद्ध प्रत्याख्यान के उपदेशक, अष्टविध मद के मर्दक, अष्टविध कर्म ग्रन्थियों के भेदक, नवविध ब्रह्मचर्य गुप्ति के पालक, द्वादश भिक्षु प्रतिमा स्पर्शक, द्वादश तप एवं भावना भावित मतिवान, द्वादशांग सूत्रार्थ पारगामी और शिष्यादि समुदायवान इत्यादि लक्षणों से युक्त होते हैं।21 ___आदिपुराण के अनुसार आचार्य निम्न गुणों से सम्पन्न होते हैं22- 1. सदाचारी 2.स्थिरबुद्धि 3. जितेन्द्रिय 4. अन्तरंग और बहिरंग सौम्यता 5. व्याख्यान शैली की प्रवीणता 6. सुबोध व्याख्या शैली 7. प्रत्युत्पन्नमतित्व 8. गम्भीरता 9. प्रतिभा सम्पन्नता 10. तार्किकता 11. दयालुता 12. शिष्य के अभिप्रायों को अवगत करने की क्षमता वाला 13. समस्त विद्याओं का ज्ञाता 14. संस्कृत, प्राकृत आदि अनेकविध भाषाओं के जानकार 15. स्नेहशीलता 16. उदारता 17. सत्यवादिता 18. सत्कुलोत्पन्नता 19. परहित तत्परता आदि। महानिशीथसूत्र में आचार्य के अनेक गणों का वर्णन है। तदनुसार आचार्य 1. सुन्दर व्रत वाला 2. सुशील 3. दृढ़व्रती 4. दृढ़ चारित्री 5. अखण्ड अंग वाला 6. अपरिग्रही 7. राग-द्वेष विजेता 8. मोह- मिथ्यात्व रूपी मल कलंक से रहित 9. उपशान्त 10. स्वप्न शास्त्र का ज्ञाता 11. मोक्षमार्ग का परिज्ञाता 12. स्त्रीकथा- भक्तकथा- राजकथा- देश कथाओं से मुक्त 13. अत्यन्त अनुकम्पाशील 14. परलोक में प्राप्त होने वाले विघ्नों से डरने वाला 15. कुशील का शत्रु 16. शास्त्रों के भावार्थ को जानने वाला 17. अहिंसा आदि व्रत तथा क्षमादि दसधर्म में लीन रहने वाला 18. शास्त्रों के रहस्य का ज्ञाता 19. द्वादशविध तपों में मग्न रहने वाला 20. पाँच समिति का पालक 21. तीन गुप्तियों से युक्त 22. अठारह हजार शीलांग की आराधना करने वाला 23. शत्रुमित्र के साथ समभाव रखने वाला 24. सात भय स्थानों से मुक्त 25. नौ ब्रह्मचर्य व गुप्ति की विराधना से डरने वाला 26. बहुश्रुती 27. आर्यकुल में जन्मा हुआ
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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