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________________ 146... पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अभ्युत्थान- गुरु आदि के आने पर खड़ा होता है, आसन- उन्हें आसन प्रदान करता है, किंकर - प्रात: गुरु चरणों में उपस्थित हो पूछता है कि 'किं करोमि’मुझे क्या करना है? आज्ञा दें, अभ्यासकरण- सदा गुरु के समीप रहता हुआ सूत्रादि का अभ्यास करता है, अविभक्ति- शिष्य और (आगम के अध्ययनार्थ) उपसम्पदा हेतु आगत मुनियों में अभेद बुद्धि रखता है, प्रतिरूपयोग - अभ्युत्थान आदि में जागरूक रहता है, नियोग- जो शिष्य जिस कार्य के योग्य है, उसे उसमें नियुक्त करता है, पूजा - गुरु का यथायोग्य बहुमान करता है, अपरुष - हमेशा मधुर वचन बोलता है, अवलय - ऋजु होता है, अचपलस्वभाव से स्थिर होता है, अकुत्कुच - मुख आदि से विद्रूप चेष्टा नहीं करता, अदम्भक- किसी व्यक्ति को छलता नहीं है, सहित - 'काले कालं समायरे' का प्रतिरूप होता है यानी स्वाध्याय, प्रतिलेखना, तप आदि सब कार्य समय पर करता है, समाहित- उपशम भाव में रहता है और उपहित - ज्ञान आदि में रमण करता हुआ सदा गुरु सन्निधि में रहता है वह आचार कुशल होता है । यथार्थतः वही आचार्य होता है। 19 व्यवहारभाष्य टीका के अनुसार जो दात्रसदृश (लकड़ी छिलने वाले आरा के समान) पंचविध आचार के द्वारा कर्मकुश को काटता है वह भावकुशल आचार्य है। 20 आवश्यकचूर्णिकार ने आचार्य के अनेक लक्षण बतलाए हैं। तदनुसार आचार्य आचारकुशल, संयमकुशल, प्रवचनकुशल, संग्रहकुशल (देश-काल के अनुसार शिष्य, वस्त्र, पात्रादि का संग्रह करने वाला), उपग्रहकुशल, अनुपग्रहकुशल, स्व-पर सिद्धान्त में निपुण, ओजस्वी, तेजस्वी, यशस्वी, अपराजयी, उदारहृदयी, क्रोधजयी, जितेन्द्रिय, भय विमुक्त, परिषहजयी, ब्रह्मस्थित, निर्मोही, निरहंकारी, अननुतापी ( किसी को पीड़ा नहीं पहुँचाने वाले), अनुकूल-प्रतिकूल में सहिष्णु, अचपल, अशबल (दोष रहित), क्लेश रहित, निर्मल चारित्रवान, दशविध आलोचना दोष के ज्ञाता, अष्टविध आचार स्थान के विज्ञाता, अष्टविध आलोचना गुणों के उपदेशक, आलोचनार्ह सूत्रों के मर्मज्ञ, प्रायश्चित्त दान में कुशल, मार्ग-कुमार्ग के परीक्षक, अवग्रह - ईहाअपाय-धारणा आदि बुद्धि में निष्णात, अनुयोग ज्ञाता, नयज्ञ, शिष्यगण को विविध उपायपूर्वक आचारोपदेश कारक, अश्व के समान बिना देखे ही
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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