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________________ 102...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में व्यवहारभाष्य के उल्लेखानुसार सुयोग्य मुनि आहार, उपधि और पूजा प्राप्ति के लिए इस पद को धारण नहीं करें, केवल कर्मों के निर्जरार्थ गण को स्वीकार करे। 44 जो मुनि धर्मप्रभावना, कर्मनिर्जरा एवं आत्मशुद्धि के उद्देश्य से इस पद पर आरूढ़ होते हैं वे विशिष्ट लब्धि से युक्त बनते हैं। फलस्वरूप गणधारी का आहार, उपकरण और संस्तव (गुणकीर्तन) उत्कृष्ट होता है। शिष्यों, प्रतीच्छिकों (अतिथि साधुओं ), गृहस्थों एवं अन्य तीर्थिकों द्वारा उसे सम्मान प्राप्त होता है। यह गणाचार्य सूत्र और अर्थ से परिपूर्ण है, आगाढ़प्रज्ञा वाले (जिन्हें कठिनाई से सीखा जाए ऐसे ) शास्त्रों का ज्ञाता है, भावितात्मा है, अच्छे कुल में उत्पन्न हुआ है, विशुद्ध भाव से युक्त है - इस प्रकार उसके विद्यमान गुणों की सभी उत्कीर्तना - प्रशंसा करते हैं । यथोक्त गुणसम्पन्न गणाचार्य की स्तवना, पूजा करने से आगम बहुमानित होता है, अर्हत आज्ञा की अनुपालना होती है, अभावित शिष्यों में स्थिरत्व आता है, विनय के निमित्त से नित्यप्रति कर्म निर्जरा होती है और अहंकार नष्ट होता है। जिस प्रकार लौकिक धर्म के निमित्त खुदवाये गये तालाब में पद्म आदि स्वत: खिल उठते हैं। यदि पानी सूख भी जाए तो वहाँ धान्य की बुवाई करके उसका उपयोग करने पर वह निंदनीय नहीं माना जाता है इसी प्रकार जो निर्जरा के लिए गणधारण करता है वह उसके पूजा का ही हेतु बनता है । भावार्थ है कि गणधारक परोपकार के लक्ष्य से सम्पृक्त होना चाहिए । इस भावना से अंगीकृत पद स्व-पर के लिए हितकारी एवं सुखकारी होता है। साथ ही गणधारक की पूजा, प्रतिष्ठा एवं प्रशंसा का हेतु बनता है । सन्दर्भ-सूची 1. अनुत्तरज्ञानदर्शनादिगुणानां गणं धारयन्तीति गणधराः। आवश्यकनियुक्ति, गा. 82 की मलयगिरि टीका 2. जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 500-501 3. पाइयसद्दमहण्णवो, पृ. 286 4. गणो यस्य अस्तीति गणि। गणस्य आचार्यों गणाचार्यों वा। स्थानांगसूत्र, 5. यस्य पार्श्वे आचार्याः सूत्रार्थ अभ्यस्यन्ति। 6. जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 500 अभयदेवटीका, पृ. 232. आचारांगचूर्णि, पृ. 326
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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