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गणिपद स्थापना विधि का रहस्यमयी स्वरूप...103 7. घित्तुं च सुहं सुहगणण, धारणा दाउं पच्छिउं चेव । एएहिं कारणेहिं, जीयंति कयं गणहरोहिं ।
आवश्यकनियुक्ति, 91 8. विशेषावश्यकभाष्य, 1117 9. आवश्यकनियुक्ति, 588 की चूर्णि, भा. 1, पृ. 332-333 10. पंचवस्तुक, 1318 11. वही, 1319 12. वही, 1322 13. व्यवहारभाष्य, 2333-2334 14. व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 3/1 15. व्यवहारभाष्य, 1376 16. व्यवहारसूत्र, पृ. 309 17. वही, पृ. 310 18. व्यवहारभाष्य, 1398-1399 19. वही, 1396 20. सुतत्थे निम्माओ, पियदढ धम्मोऽणुवत्तणा,
जाईकुलसंपन्नो, गंभीरो लद्धिमंतो कुसलो या संगहुवग्गह निरओ, कयकरणो पवयणाणुरागी य, एवं विहो उ भणिओ, गणसामी जिणवरिंदेहि।।
पंचवस्तुक, 1315-16 21. विधिमार्गप्रपा-सानुवाद, पृ. 213 22. धर्मसंग्रह, गा. 135-136, भा. 3, पृ. 515 23. आचारदिनकर, पृ. 112 24. (क) व्यवहारभाष्य, 1422-1429
(ख) भिक्षुआगमकोश, भा. 2, पृ. 67 25. व्यवहारभाष्य, 1406-1407 26. आचारचूला, संपा. मधुकरमुनि, 1/6/399 27. व्यवहारसूत्र, 3/1-2 28. आवश्यकचूर्णि, भा. 1, पृ. 86 29. आवश्यक हारिभद्रीय टीका, भा. 1, पृ. 94 30. व्यवहारभाष्य, 1422-1429, 1474, 1406-1407 31. पंचवस्तुक, 1314-1357