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100...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
समय गुरु परम्परागत सामाचारी के अनुसार तप का प्रत्याख्यान करें। फिर नूतन गणनायक स्वयं भी अन्य शिष्यों को व्याख्यान दें।
गणिपद पर स्थापित करते समय जिस गण की अनुज्ञा देते हैं उस गण का ही दिशिबन्ध करते हैं। तुलनात्मक विवेचन
सामान्य रूप से गणानुज्ञा-विधि पंचवस्तुक आदि चार ग्रन्थों में प्राप्त होती है। तदनुसार तुलनात्मक अध्ययन इस प्रकार है -
वासदान की अपेक्षा- पंचवस्तुक39 में नूतन गणि के मस्तक पर एक बार वासदान करने का उल्लेख है जबकि प्राचीनसामाचारी,40 सुबोधासामाचारी41 एवं विधिमार्गप्रपा42 में इस विधि के प्रारम्भ में एवं अनुज्ञा दान के पश्चात प्रदक्षिणा करते समय ऐसे दो बार वासचूर्ण डालने का निर्देश है।
प्रदक्षिणा की अपेक्षा- सामान्यतया गुरु द्वारा गणिपद की अनुज्ञा दी जाने पर पदग्राही शिष्य द्वारा चतुर्विधसंघ के सूचनार्थ तीन प्रदक्षिणा देने का विधान है। तीनों ग्रन्थों में इस विषयक मतभेद हैं। पंचवस्तुक में समवसरण की, प्राचीनसामाचारी में समवसरण और गुरु दोनों की एक तथा विधिमार्गप्रपा में दो बार गुरु की प्रदक्षिणा देने का उल्लेख है।
वस्त्रादि ग्रहण के अनुज्ञा की अपेक्षा- विधिमार्गप्रपा43 के अनुसार जिस शिष्य को गणनायक पद पर स्थापित किया जाता है उसे स्वलब्धि से वस्त्र, शिष्य आदि ग्रहण करने की अनुज्ञा भी दी जाती है, ऐसा उल्लेख पंचवस्तुक
और प्राचीनसामाचारी में नहीं है। पंचवस्तक में स्वलब्धिक की चर्चा तो की गई है किन्तु वह इस सन्दर्भ में नहीं है।
प्रत्याख्यान की अपेक्षा- नूतन गणि को गणानज्ञा के दिन कौन सा तप करना चाहिए ? पंचवस्तुक में इस विषयक कुछ भी नहीं कहा गया है। प्राचीन सामाचारी में प्रत्याख्यान करने का सूचन अवश्य है, परन्तु तप विशेष का नामोल्लेख नहीं हैं। विधिमार्गप्रपा में परम्परागत सामाचारी के अनुसार तप करने का निर्देश है।
इस प्रकार उपलब्ध ग्रन्थों में कुछ विषयों को लेकर परस्पर मत-वैभिन्य हैं। इसके अतिरिक्त देववन्दन, नन्दी श्रवण, कायोत्सर्ग, प्रवेदन, हित शिक्षण आदि में प्रायः समरूपता है। आचारदिनकर में गणाचार्य को नन्दीपाठ सुनाने का निषेध है।