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98...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में संदिसह साहूणं पवेएमि" - हे भगवन्! मैं गणानुज्ञा के बारे में आपको कह चुका हूँ, अब आपकी आज्ञा पूर्वक मुनि संघ (चतुर्विधसंघ) को इस सम्बन्धी जानकारी देता हूँ।
गुरु कहें – 'पवेएहि' चतुर्विधसंघ में गणानुज्ञा का प्रवेदन करो।
5. तदनन्तर नवीन गणनायक एक खमासमण देकर नमस्कारमन्त्र का उच्चारण करते हुए गुरु की तीन प्रदक्षिणा दें।
गुरु प्रदक्षिणा के दौरान में तीन बार उसके मस्तक पर वासचूर्ण डालते हुए 'गुरुगुणेहिं वड्डाहि' इस वाक्य से आशीर्वाद प्रदान करें। उस समय उपस्थित संघ भी पूर्वप्रदत्त वासचूर्ण को उनकी ओर उछालते हुए तीन बार बधाएं।
उसके बाद नूतन गणनायक "तुम्हाणं पवेइयं, साहूणं पवेइयं, संदिसह काउस्सग्गं करेमि" इसी के साथ "दिगाइ अणुणत्थं करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र" बोलकर एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्स पाठ बोलें। उसके बाद मूल आचार्य के समीप बैठ जाएं। फिर चतुर्विधसंघ नूतन गणनायक को वन्दन करें। उसके बाद मूलगुरु .. गणधर एवं गच्छयोग्य हितशिक्षा प्रदान करें। नूतन गच्छाचार्य को हितशिक्षा दान
सर्वप्रथम मूलगुरु नूतन गणनायक को अनुशिक्षण देते हैं37 – .
तुम धन्य हो! तुमने वज्र से भी दुर्भेद संसाररूपी पर्वत को ध्वस्त करने वाले एवं संसार दुःख का हरण करने वाले महान जिन-आगम को जान लिया है अब तुम्हारे द्वारा इस पद को सम्यक रूप से आचरित किया जाना चाहिए।
- यदि तुमने इस पद का यथोचित रूप से पालन नहीं किया तो तुम पर भारी ऋण चढ़ जाएगा। अत: तुम्हें इस पद पर रहते हुए केवलज्ञान उपलब्ध हो जाये, वैसा प्रयत्न करना है।
यह गणधरपद केवलज्ञान का परम हेतु है, अन्य प्राणियों के लिए मोहकर्म को उपशान्त करने वाला और स्वभावत: संवेग-निर्वेद आदि भावों को उत्पन्न करने वाला है। आपको जिस पद पर आरोपित किया गया है, वह सत सम्पदा का एक पद है, जो लोक में अति उत्तम और महापुरुषों द्वारा सेवित है।
धन्य आत्माओं को ही इस पद पर स्थापित किया जाता है। धन्य आत्माएँ ही इस पद का सम्यक् वहन करती हुई संसार समुद्र के पार पहुँचती है और