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गणिपद स्थापना विधि का रहस्यमयी स्वरूप...87 का सम्पादन करते हुए संस्कृति एवं सांस्कृतिक मूल्यों की चिर-स्थापना कर सकता है।
यदि प्रबन्धन के क्षेत्र में गणिपद के योगदान को लेकर चिन्तन किया जाए तो गणि अर्थात (leader), जो कि गण संचालक होते हैं। ऐसे व्यक्तियों में समुदाय संचालन एवं व्यवस्थापन का गुण होना अत्यावश्यक है। एक योग्य संचालक अपनी ऑफिशियल या पॉलिटिकल लाइफ का असर अपने व्यक्तिगत जीवन (Personal life) पर नहीं होने देता, जिससे वैयक्तिक एवं सामुदायिक दोनों जीवन शान्तिपूर्वक यापन किए जा सकते हैं। सुयोग्य शासक में केवल ज्ञान पक्ष ही नहीं, अपितु समन्वय स्थापना, व्यवहार कुशलता, वाक्पटुता, निर्भीकता आदि कई गुण भी देखे जाते हैं जिससे कि एक योग्य नेता के चुनाव के विषय में अच्छा मार्गदर्शन प्राप्त हो सकता है। यह प्रबन्धन के लिए भी मुख्य है। हम गणि को संघ का (Managing Director) भी कह सकते हैं।
जो बुद्धि, श्रुत एवं शिष्य सम्पन्न हो वह गणिपद के योग्य माना गया है अत: जो हर प्रकार से अनुभव आदि में निपुण हो, जो कार्य करने एवं करवाने में सक्षम हो, ऐसे व्यक्तियों को यदि सामाजिक व्यवस्था में भी किसी उच्च पद पर स्थापित किया जाए तो वह समाज एवं राष्ट्र विकास में सहायक होते हैं। इसी प्रकार योग्य शिष्य आदि का चुनाव कर उन्हें योग्य पद हेतु निर्वाचित करने या स्थापित करने पर सत्ता का मोह कम होता है जिससे कि शासन-व्यवस्था का संचालन प्रशस्त रूप से हो सकता है।
इस प्रकार गणिपद के माध्यम से कार्यालय प्रबन्धन, समुदाय प्रबन्धन, शासन व्यवस्था प्रबन्धन आदि में विशेष मार्गदर्शन प्राप्त हो सकता है।
___ गणिपद का मूल्यांकन यदि आधुनिक जगत की समस्याओं के सन्दर्भ में किया जाए तो आज पद-शक्ति का दुरूपयोग एवं पद लालसागत समस्याओं के समाधान में गणिपद संचालन का तरीका उपयोगी हो सकता है। विद्यालय, कार्यालय, मन्त्रालय आदि में जो समस्याएँ अनुशासनहीनता, स्वार्थ परायणता, अयोग्य पद प्रभारी आदि के कारण आती है उन पर नियन्त्रण किया जा सकता है। गुरु-शिष्य सम्बन्धों में बढ़ती दरारों को कम करने एवं गुरु-शिष्य के आत्मिय सम्बन्धों के निर्माण में इसका अनन्य सहयोग हो सकता है। ___समाज में घटते सांस्कृतिक मूल्यों को एवं आध्यात्मिक ज्ञान के महत्त्व को गणि आदि के माध्यम से सही दिशा प्राप्त हो सकती है। गणि जैसे कुशल व्याख्याता