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86...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में निर्वहन होता है। इस प्रकार हम पाते हैं कि गणि-गणधरपद विविध दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में गणिपद की प्रासंगिकता
पद-व्यवस्था की परम्परा पूर्वकाल से समाज में प्रचलित है तथा वर्तमान में भी इसकी उतनी ही उपादेयता परिलक्षित होती है। जैनशासन में चतुर्विध संघ के संचालन हेतु कुछ विशिष्ट पदों की व्यवस्था है उन्हीं में से एक गणिपद है।
गणिपद का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जाए तो यह कह सकते हैं कि किसी भी संघ में नायक (Group leader) होने से उस संघ के कार्य अच्छे रूप से सम्पन्न होते हैं। जिस प्रकार दृढ़ मनोबली राजा या सेनापति के होने पर छोटी सेना भी युद्ध में जीत जाती है वैसे ही श्रेष्ठ गणि, साधु-साध्वी एवं श्रावकश्राविका समुदाय को अध्यात्म मार्ग में सही दिशा प्रदान कर सकता है। जिस प्रकार कुशल कुम्भकार अनेक श्रेष्ठ घटों का निर्माण करने में योग्य होता है वैसे ही गणिपदस्थ मुनि गच्छ में अनेक श्रेष्ठ ज्ञानीजनों का निर्माण कर सकता है, जिससे उत्तरोत्तर संघ में वृद्धि होती रहती है। ___ यदि गणिपद के वैयक्तिक उपादेयता की समीक्षा की जाए तो निम्नोक्त तथ्य उजागर होते हैं -
• गणिपद धारण करने वाला व्यक्ति अपने ज्ञान बल से सम्पूर्ण संघ को लाभान्वित कर सकता है।
• ज्ञान दान से अनन्त ज्ञान की प्राप्ति होती है तथा व्यवस्था संचालन से नेतृत्व गुण का विकास होता है।
• यदि पदारूढ़ होने के बाद भी अहंकार, मान कषाय आदि न हो तो क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि दस गुणों का प्रकटीकरण एवं स्वभाव दशा का अभ्यास होता है।
सामाजिक परिप्रेक्ष्य में गणिपद की समीक्षा की जाए तो निम्न बातें सामने आती हैं -
• गणि एवं अन्य पदधारियों के आधार पर संघ की महिमा समाज में भी स्थापित होती है। योग्य गणि होने पर जिनशासन की प्रभावना होती है।
• समाज का ज्ञान एवं आचार पक्ष मजबूत बनता है। • योग्य शिष्य श्रावक वर्ग को प्रतिबोध देकर जिनशासन के महान कार्यों