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76...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
ज्ञातव्य है कि आचारकुशल आदि गुणों का विस्तृत विवेचन उपाध्याय पदस्थापना विधि के अन्तर्गत अध्याय-7 में किया जाएगा। गणावच्छेदक पदस्थापना हेतु शुभ दिन ___सामाचारीप्रकरण के संकेतानुसार आचार्य पदस्थापना के लिए अपेक्षित शुभयोग (मुहूर्त) के उपस्थित होने पर गणावच्छेदकपद की अनुज्ञा करनी चाहिए। स्पष्टतया जिस शुभमुहूर्त में शिष्य को आचार्यपद पर स्थापित किया जाता है उसी श्रेष्ठ मुहूर्त में गणावच्छेदकपद की स्थापना विधि सम्पन्न करनी चाहिए। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि आचार्य पदस्थापक गुरु के द्वारा ही गणावच्छेदकपद की स्थापना की जानी चाहिए।
गणावच्छेदक पदस्थ मनि को आसन, स्थापनाचार्य, विद्यामण्डलपट्ट आदि नहीं दिये जाते हैं अत: किसी उपकरण या सामग्री की आवश्यकता नहीं रहती है। यदि जिनमन्दिर का अभाव हो अथवा पदोत्सव हेतु अपेक्षित स्थान न हों, तो नन्दी रचना योग्य सामग्री की आवश्यकता रहती है। गणावच्छेदकपद विधि की ऐतिहासिक विकास यात्रा
जो गण के कार्य के विषय में चिन्तन करता रहता है वह गणावच्छेदक कहलाता है। आगमकारों द्वारा मान्य सात पदों में इसका अन्तिम सातवाँ स्थान है।
प्रश्न होता है कि गणावच्छेदक पद का उद्भव कब, किन उद्देश्यों को लेकर हुआ? पूर्व विवेचन से इसका सामान्यतया समाधान हो जाता है। तदुपरान्त इस सम्बन्ध में विशेष यह कहा जा सकता है कि विशाल गच्छ में सभी तरह के कृत्यों का निष्पादन आचार्य अकेले नहीं कर सकते, भले ही सभी गतिविधियां उनके निर्देशन के अनुसार प्रवर्तित होती हो। परन्तु क्रियान्विति के लिए सक्षम सहयोगी मुनियों का होना अत्यावश्यक है। ऐसी स्थिति में ही गणावच्छेदक जैसे पद का उद्भव होना प्रतीत होता है तथा आचार्य के उत्तरदायित्वों में सहभागी बन उन्हें यथासम्भव सामुदायिक प्रवृत्तियों से निवृत्त रखने का उद्देश्य इसमें अन्तर्निहित रहा होगा।
इस पद का स्वरूप प्रारम्भिक काल से लेकर आज तक किस रूप में विद्यमान है? इस बिन्दु को लेकर यदि इतिहास के पृष्ठों का पर्यवेक्षण करें तो हमें इस पद नाम के उल्लेख तो आगमिक एवं व्याख्यामूलक ग्रन्थों में मिल