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70...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में दीजिए, मैं क्या कहूं ? तब गुरु कहे – 'वंदित्ता पवेयह' वन्दन करके प्रवेदित
करो।
3. शिष्य तीसरी बार खमासमणसूत्र द्वारा वन्दन कर कहें - 'इच्छकारि तुम्हे अहं दिगाइ अणुनाओ' इच्छामो अणुसद्धिं आपने मुझे दिशादि की अनुमति दे दी है? अब आपके अनुशिक्षण की इच्छा रखता हूँ। प्रत्युत्तर में गुरु कहें – 'सम्मं अवधारय, अन्नेसिपि पवेयह' इस स्थविर पद का सम्यक् रूप से अवधारण करो तथा अन्य मुनियों में भी इस पद का प्रवर्तन करो।
4. फिर स्थविर पदग्राही चौथा खमासमण देकर कहें - 'तुम्हाणं पवेइओ साहणं पवेएमि' आपको इस पद ग्रहण के सम्बन्ध में सूचित किया, अब मुनि संघ में इस पद स्वीकार की सूचना देता हूँ।
5. फिर शिष्य पांचवाँ खमासमण देकर एक-एक नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हुए गुरु और समवसरण की तीन प्रदक्षिणा दें।
6. फिर शिष्य पुनः खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन कर कहें - 'तुम्हाणं पवेइओ, साहूणं पवेइओ संदिसह काउस्सग्गं करेमि' मैंने आपको इस पद की सम्यक जानकरी दे दी है, मुनि संघ (चतुर्विध संघ) में भी इसकी सूचना दे चुका हूँ, अब आपकी अनुमति पूर्वक कायोत्सर्ग करता हूँ। ___7. तदनन्तर सातवां खमासमण देकर "दिगाइ अणुजाणावणियं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थसूत्र' बोलकर एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र कहें। __ मन्त्रदान - फिर शुभ लग्न का समय आ जाने पर गुरु शिष्य के दाहिने कर्ण में इस मन्त्र को तीन बार सुनाएँ - ___ "ॐ नमो अरिहंताणं ॐ नमो सिद्धाणं ॐ नमो आयरियाणं ॐ नमो उवज्झायाणं ॐ नमो लोए सव्व साहूणं, ॐ नमो अरिहओ भगवओ महइ, महावीर वद्धमाणसामिस्स सिज्झउ मे भगवई महई महाविज्जा वीरे-वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे वद्धमाणवीरे जए विजए जयंते अपराजिए अणिहए ॐ ह्रीं स्वाहा।"
शेष विधि - इसके पश्चात गुरु शिष्य का नया नामकरण करें। तदनन्तर कनिष्ठ साधु एवं साध्वियाँ आदि चतुर्विध संघ उन्हें वन्दन करें। उसके बाद गुरु नूतन स्थविर मुनि को गच्छ हितकारी शिक्षा दें। उस दिन गुरु-शिष्य दोनों आयंबिल का प्रत्याख्यान करें।