SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थविर पदस्थापना विधि का पारम्परिक स्वरूप...69 काल तक यह प्रक्रिया गुरु शिष्य में आदान-प्रदान के रूप में ही प्रवर्तित थी। यही वजह है कि विशेष स्पष्टीकरण आगमेतर ग्रन्थों में उपलब्ध होता है क्योंकि कलिकाल में स्मृति हास होने के कारण उन्हें पुस्तकारूढ़ करना आवश्यक हो गया था। स्थविर पदस्थापना विधि प्राचीनसामाचारी में निर्दिष्ट स्थविर पदस्थापना की विधि इस प्रकार है24 वासदान - सर्वप्रथम स्थविर पदग्राही शिष्य का परीक्षण करें। उसके बाद श्रेष्ठ दिन में जिनालय या नन्दी रचना के समीप स्थापनाचार्य एवं गुरु के लिए दो आसन बिछाएं। फिर स्थापनाचार्य को तद्योग्य आसन पर स्थापित करें। फिर स्थविर पददाता गुरु पूर्व स्थापित आसन पर बैठकर सुगंधित चन्दन चूर्ण को अधिवासित करें। फिर स्थविर पदानुज्ञा निमित्त लोचकृत शिष्य के उत्तमांग (मस्तक) पर उसका क्षेपण करें। देववन्दन - तदनन्तर नौ स्तुतियों एवं कायोत्सर्ग पूर्वक देववन्दन करें। सर्वप्रथम जिनमें उच्चारण और अक्षर क्रमश: बढ़ते हुए हों, ऐसी चार स्तुतियाँ बोलें, फिर शान्तिनाथ भगवान, द्वादशांगी देवता, क्षेत्रदेवता, शासनदेवता एवं वैयावृत्यकारक देवता की स्तुतियाँ बोलें। यहाँ शान्तिनाथ की आराधना निमित्त एक लोगस्ससूत्र एवं शेष में एक-एक नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करें। शेष विधि प्रवर्तक पदस्थापना की भाँति करनी चाहिए। कायोत्सर्ग - तत्पश्चात स्थविर पदग्राही एक खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन करें। फिर पद दाता गुरु और पदग्राही शिष्य दोनों ही स्थविरपद की अनुज्ञा देनेलेने के निमित्त एक लोगस्स (सागरवरगंभीरा तक) का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें। अनुज्ञापन - 1. उसके पश्चात शिष्य एक खमासमण देकर कहे - 'इच्छकारि भगवन्! तुम्हे अम्हं दिगाइ अणुजाणह' हे भगवन् ! आप अपनी स्वेच्छा से मुझे दिशादि (विचरण आदि) की अनुमति दें। तब गुरु बोलें - 'अहमेअस्स साहुस्स खमासमणाणं हत्येणं दिगाई अणुजाणामि' पूर्वाचार्यों द्वारा आचरित परम्परा का अनुसरण करते हुए मैं इस मुनि के लिए दिशा आदि की अनुज्ञा देता हूँ। 2. शिष्य दूसरा खमासमण देकर कहें - 'संदिसह किं भणामि?' आज्ञा
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy