SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 68...पदारोहण सम्बन्धी विधि रहस्यों की मौलिकता आधुनिक परिप्रेक्ष्य में वन्दन करना बतलाया है। इसी तरह तीन प्रत्यनीकों में स्थविर प्रत्यनीक का नाम भी निर्दिष्ट है। 19 अन्तकृतदशासूत्र में अन्धकवृष्णि के पुत्र गौतम अनगार द्वारा अरिष्टनेमि भगवान के सान्निध्य में रहने वाले, आचार-विचार की उच्चता को पूर्णतया प्राप्त स्थविरों के पास सामायिक से लेकर आचारांग आदि 11 अंगों के अध्ययन करने का वर्णन प्राप्त है। 20 अनुत्तरोपपातिकदशा में पंचम गणधर सुधर्मा स्वामी को स्थविर शब्द से सम्बोधित किया गया है। 21 विपाकसूत्र में उज्झितककुमार, अंजूदेवी आदि के द्वारा स्थविरों के पास शंका- कांक्षा आदि दोषों से रहित होकर बोधिलाभ प्राप्त किया जाएगा । तदनन्तर प्रव्रज्या ग्रहण कर सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होंगे और अन्ततः सर्व कर्मों का क्षय कर सिद्धत्व पद को प्राप्त करेंगे, ऐसा उल्लेख है। 22 उक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि मूल आगमों में स्थविर का उल्लेख मुख्यतया उनके महत्त्व को दर्शाने के रूप में हुआ है। इसके अतिरिक्त स्थविर सम्बन्धी कोई वर्णन नहीं है। इससे आगे छेद सूत्रों को पढ़ते हैं तो व्यवहारसूत्र में स्थविर के प्रकारों की चर्चा प्राप्त होती है23 और निशीथसूत्र में उनकी विराधना के फलस्वरूप प्रायश्चित्त का विधान बतलाया गया है। इसी क्रम में आगमिक व्याख्या साहित्य का अध्ययन करते हैं तो आवश्यकनिर्युक्ति, ओघनियुक्ति टीका, उत्तराध्ययन टीका आदि में स्थविर के विभिन्न अर्थ एवं उनके प्रति करने योग्य कृत्यों का विवेचन प्राप्त होता है । इस तरह आगम युग से व्याख्या काल (विक्रम की 8वीं शती) तक स्थविर पद का सामान्य वर्णन ही उपदर्शित होता है। इसके अनन्तर लगभग 9वीं - 10वीं शती का एक मात्र ग्रन्थ सामाचारी प्रकरण (प्राचीन सामाचारी) में स्थविर पदस्थापना की विधि दृष्टिगत होती है। यह इस पदस्थापन विधि का आदिम- अन्तिम ग्रन्थ भी कहा जा सकता है। क्योंकि इससे परवर्ती साहित्य में प्रस्तुत विधि लगभग प्राप्त नहीं होती है। उक्त ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह माना जा सकता है कि पूर्वकाल में भी स्थविर पद का विधिवत आरोपण किया जाता था और तीव्र क्षयोपशम
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy