SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थविर पदस्थापना विधि का पारम्परिक स्वरूप...71 तुलनात्मक विवेचन स्थविर पदस्थापना-विधि के तुलनात्मक विवेचन हेतु इतना कह देना आवश्यक है कि इस विधि का स्वरूप एक मात्र सामाचारीप्रकरण (प्राचीन सामाचारी) में उपलब्ध है। यह किसी पूर्वधर आचार्य की रचना होनी चाहिए। इसके रचयिता एवं रचनाकार के बारे में स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं है, फिर भी इसकी भाषा आदि के अनुमान से इसे विक्रम की 9वीं-10वीं शती का ग्रन्थ कह सकते हैं। ___ जब हम सामाचारीप्रकरण के अनुसार इस विधि की तुलना करते हैं तो पूर्व निर्दिष्ट प्रवर्तक पदस्थापना विधि के सदृश ही स्थविरपदानुज्ञा की मौलिकताएँ नजर आती है, क्योंकि इस ग्रन्थ के अनुसार स्थविरपदानुज्ञा की विधि प्रवर्तकपदानुज्ञा के समान ही सम्पन्न की जाती है। अतएव ग्रन्थ की अपेक्षा से तुलनीय विशिष्टताएँ पूर्ववत ही समझें। यदि पूर्वकथित परम्पराओं के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत विधि का अनुशीलन किया जाए तो प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्तमान में जैन धर्म की स्थानकवासी आम्नाय को छोड़कर श्वेताम्बर-दिगम्बर किसी परम्परा में स्थविर पद प्रचलित नहीं है, अत: यह विधि विच्छिन्न हो गयी है। स्थानकवासी परम्परा में दो वर्ष पूर्व ही पूज्य राममुनिजी को आचार्य पद पर स्थापित करने से पहले उनसे ज्येष्ठ पाँच मुनियों को स्थविर पद प्रदान किया गया था। इस प्रकार स्थानक परम्परा में स्थविर पद जीवन्त है। वैदिक ग्रन्थों में तत्सम्बन्धी कोई उल्लेख पढ़ने में नहीं आया है। बौद्ध-साहित्य में भिक्षुणी के पदों का स्पष्ट विवेचन हैं जिनमें स्थविर पद भी है। इस अपेक्षा से स्थविर पद भी होना चाहिए। उपसंहार सामान्यतया वय, श्रुत या पर्याय से वृद्ध श्रमण-श्रमणी स्थविर कहलाते हैं। जो श्रमण स्थविर योग्य हो जाता है उसे विधिपूर्वक स्थविर पद पर स्थापित किया जाता है। स्थविर पदस्थ का मुख्य कर्त्तव्य आत्मोन्नति के साथ संघोत्कर्ष करना है। अहिंसक होना, समिति का पालन करना, स्वाध्याय आदि करना ये सभी कार्य संयमी जीवन की उन्नति के लिए आवश्यक हैं। ये आराधनाएँ आत्मोत्कर्ष
SR No.006244
Book TitlePadarohan Sambandhi Vidhiyo Ki Maulikta Adhunik Pariprekshya Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy