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26... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन करने से शरीर में स्फूर्ति, स्वस्थता एवं अप्रमतत्ता बनी रहती है। इससे शारीरिक स्वस्थता एवं नियंत्रण में सहयोग प्राप्त होता है। इस प्रकार भिक्षाटन द्वारा मुनि आत्म नियंत्रण करते हुए व्यक्तित्व विकास तो करता ही है। साथ ही Mass communication skills में भी पारंगत हो जाता है। भिक्षाचर्या सम्बन्धित विधि विधानों के रहस्य
जैनाचार्यों ने मुनि जीवन के क्रिया-कलापों का निर्देशन अनेक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए किया है। भिक्षाटन साधुचर्या का आवश्यक अंग है तथा अनेक रहस्यमयी नियमोपनियम से युक्त है। भिक्षाचर्या के द्वारा मनि किस प्रकार शारीरिक निरोगता एवं आध्यात्मिक उत्थान को अधिकाधिक प्राप्त करते हुए अपने आपको लक्ष्य की ओर गतिमान रखें इसका भी पूर्ण विवेक रखा गया है। भिक्षाचर्या सम्बन्धी विधि-विधानों के रहस्य इस प्रकार है___ 'जस्स य जोगो'- यह पूर्वाचार्यों द्वारा सम्मत आचरणा है कि जैन मुनि जब भी आहार के लिए उपाश्रय से बाहर निकले उस समय 'जस्स य जोगो' और 'आवस्सिआए' इन दो शब्दों का उच्चारण करते हुए प्रस्थान करें। 'जस्स य जोगो' का गढ़ार्थ यह है कि भिक्षाकाल में संयमोपकारी वस्त्र-पात्र-आहार या शिष्यादि जिन वस्तुओं का योग मिलेगा उन्हें मैं ग्रहण करूँगा। यदि 'जस्स य जोगो' ऐसा न कहें तो उस मुनि को आहार के सिवाय अन्य वस्त्रादि कुछ भी ग्रहण करना नहीं कल्पता है, उसे (शिष्यादि) सचित्त अथवा (वस्त्रादि) अचित्त वस्तु स्वीकार करने का अधिकार नहीं रहता है।11 गच्छ उपकारक वस्त्र आदि मिल भी जाये तो वह उसे नहीं ले सकता है क्योंकि मुनि जीवन की मर्यादानुसार गुर्वाज्ञा के बिना किसी भी तरह की क्रिया करना अथवा लेन-देन करना नहीं कल्पता है।12 यहाँ तक कि श्वासोश्वास, छींक आदि सूक्ष्म क्रियाओं के लिए भी ‘बहुवेलं' का आदेश लिया जाता है। यदि उक्त शब्दों का उच्चारण किये बिना भिक्षाटक मुनि के द्वारा आहार के अतिरिक्त किसी तरह की वस्तु ग्रहण कर ली जाए तो उसका तृतीय महाव्रत दूषित होता है।13 _ 'आवस्सियाए'- मुनियों को निष्प्रयोजन वसति से बाहर जाने का निषेध है इसलिए जब भी उपाश्रय से बाहर जाना पड़े तो 'आवस्सही'- आवश्यक कार्य के लिए बाहर जा रहा हूँ यह शब्द उच्चरित किया जाता है। यदि बिना कारण उपाश्रय से बाहर जाये तो स्वच्छंद वृत्ति का आचरण होने से मोक्ष मार्ग का उल्लंघन होता है। इससे अन्य दोष भी लगते हैं, ऐसा पूर्वाचार्यों का अभिमत है।14