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भिक्षाचर्या की उपयोगिता एवं उसके रहस्य ...25 जाएगा? इसी के साथ वे सामाजिक एवं आध्यात्मिक उत्कर्ष के लिए भी उचित समय ही नहीं दे पायेंगे। जीवन की प्रमुख आवश्यकता आहार है और यदि उसकी व्यवस्था हो जाए तो फिर मुनि निश्चित होकर निजानंद का अनुभव कर सकता है।
निष्परिग्रही मुनि अपने सात्त्विक जीवन के द्वारा सामान्य जनों में बढ़ती भोग वृत्ति को रोकने का संदेश देता है। इससे उच्च एवं निम्न वर्ग में दिखती भेद रेखा समाप्त हो सकती है तथा मुनि की आहार वृत्ति नियंत्रित रहती है क्योंकि मांगकर भोजन करना हो तो व्यक्ति आवश्यकता के अनुसार ही आहार करेगा। इससे शारीरिक स्वस्थता एवं मानसिक निर्मलता बनी रहती है। वर्तमान की स्वकेन्द्रित जीवन प्रणाली में इसके कारण सामान्य व्यक्ति समाज से जुड़ा रहता है। उसके भीतर परोपकार, दान वृत्ति, साधु-सन्तों के प्रति सम्मान आदि का विकास होता है। मुनि द्वारा थोड़ा-थोड़ा आहार अनेक स्थलों से लेने के कारण गृहस्थ पर बोझ नहीं बनता। इसी के साथ ही पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते वर्चस्व को भी कम किया जा सकता है। ___ यदि मुनि का किसी से मन मुटाव हो तो भिक्षार्थ गमन करने से वह समाप्त हो जाता है। इससे विश्व बंधुत्व की भावना का प्रचार होता है एवं समाज में नैतिक एवं मौलिक मूल्यों की स्थापना होती है।
भिक्षाटन के महत्त्व की परिचर्चा यदि प्रबंधन या Management के क्षेत्र में की जाए तो इससे व्यक्ति, शरीर एवं समाज प्रबंधन आदि में विशेष सहयोग प्राप्त हो सकता है।
भिक्षाटन के द्वारा मुनि को Personality improvement और Development का मौका मिलता है। जन सम्पर्क बढ़ने से बोलने-समझाने आदि की कलाएँ विकसित होती है। भिक्षाटन पूर्वक उदर पूर्ति करने से मुनि में रसासक्ति नहीं बढ़ती तथा शुद्ध सात्विक एवं सीमित आहार का सेवन होता है। इससे मन एवं शरीर स्वस्थ रहता है।
भिक्षा गमन के माध्यम से उसका सम्पर्क अनेक वर्गों से होता है जिससे वह उन्हें धर्म मार्ग एवं सदाचार की प्रेरणा दे सकता है। आहार का निश्चित काल होने से मुनि के समय का भी नियोजन होता है। एक जगह बैठे रहने से शारीरिक स्थूलता एवं प्रमाद की संभावना अधिक बढ़ जाती है। भिक्षा हेतु भ्रमण