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18... जैन मुनि की आहार संहिता का समीक्षात्मक अध्ययन 12. नामं ठवणा पिण्डो, दव्वे खेत्तेय काल भावे या एसो खलु पिंडस्स उ, निक्खेवो छव्विहो होई।
पिण्डनियुक्ति, गा. 5 13. आचारचूला, 2/1/11/ सूत्र 409 14. वही, 2/1/11/सूत्र, 409 15. औपपातिक सूत्र, 30 16. आचार चूला में असंसृष्ट आहार लेने का निषेध किया गया है क्योंकि लिप्त
हाथ आदि को धोने से पश्चात्कर्म दोष लगता है। यदि कहीं पश्चात कर्म दोष न लगने जैसा ज्ञात हो तो ही इस अभिग्रह वाले आहार ले सकते हैं सभी व्याख्याकारों ने यही स्पष्टीकरण किया है।
चरणानुयोग, भा. 2, पृ. 270 17. (क) बृहत्कल्पभाष्य वृत्ति, 1648-1650, 1652-1653
(ख) पंचवस्तुक, गा. 298-305 18. आवश्यक चूर्णि, 1/पृ. 316-317 19. मूलाचार, गा. 355 की टीका 20. भगवती आराधना, गा. 220-222 की टीका 21. पेडा या अद्धपेडा, गोमत्तिय पयंगवीहिया चेव । संबुकावट्टायय, गंतुपच्चागया छट्ठा ।
उत्तराध्ययनसूत्र, 30/19 22. (क) उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य टीका, पत्र 605
(ख) प्रवचनसारोद्धार, गा. 745-749 23. सर्व संपत्करी चैका, पौरूषघ्नी तथाऽपरा। वृत्ति भिक्षा च तत्वज्ञ, रिति भिक्षा त्रिछोदिता ।
अष्टक प्रकरण, 5/1 24. (क) दशवैकालिक नियुक्ति, 44
(ख) पिण्डनियुक्ति वृत्ति, पत्र 119
(ग) स्थानांगसूत्र, 9/30 25. स्थानांगसूत्र, 4/1/56 26. वही, 4/4/544 27. वही, 4/4/553